Book Title: Madan Parajay
Author(s): Nagdev, Lalbahaddur Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 3
________________ २ ] यस्मिन भव्यजनप्रबोधजनिका या मोक्षसौख्यप्रदासंसाराब्धिम होम्मिशोषणकरी नृणातीय प्रिया मवनपराजय यस्याः सुश्रवरणात् पुराकृतमधं नाशं समूलं व्रजेत् या दारिद्रयविनाशिनी भयहरा यक्ष्ये कथां तामहम् ॥१६॥ * १ में, मन, वचन और कायसे श्री जिनेन्द्र भगवान् के उन निर्मल चरण-कमल को नमस्कार करता हूँ, जिनकी इन्द्र उपासना करते हैं और ब्रह्म प्रादिक वन्दना करते हैं । जो पापरूपी वनके लिए कुठारके समान हैं, मोह-अन्धकारके नाशक हैं और वास्तविक सम्पूर्ण सुखको देने वाले हैं। पृथिवीपर पवित्र रघु कुल रूपी कमलको विकसित करने के लिए सूर्यके समान चङ्गदेव हुए। चङ्गदेव कल्पवृक्ष के समान याचकोंके मनोरथ पूर्ण करते थे । इनका पुत्र हरिदेव हुआ । हरिदेव दुर्जन कवि हाथियोंके लिए सिंहके समान था । इनका पुत्र नागदेव हुआ, जिसकी भूलोक में महान् वैद्यराजके रूप में प्रसिद्धि हुई । नागदेव के हेम और राम नामके दो पुत्र हुए। यह दोनों भाई भी अच्छे वैद्य थे । रामके प्रियङ्कर नामका एक पुत्र हुआ, जो श्रथियोंके लिए बड़ा ही प्रिय था। प्रियङ्करके भी श्रीमल्लुमित् नामका पुत्र उत्पन्न हुआ । श्रीमल्लुगित् जिनेन्द्र भगवान के चरणकमलके प्रति उन्मत्त भ्रमर के समान अनुरागी था और चिकित्साशास्त्र समुद्र में पारंगत था । श्रीमल्लुगित्का पुत्र मैं - नागदेव हुआ । मैं ( नागदेव ) अल्पज्ञ हूँ तथा छन्द, अलङ्कार, काव्य और व्याकरण - शास्त्र में से मुझे किसी भी विषयका बोध नहीं है । -

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