Book Title: Lonkashah Charitam Author(s): Ghasilalji Maharaj Publisher: Jain Shastroddhar Samiti View full book textPage 8
________________ (महाराष्ट्र) क्षेत्रमें प्लेग जैसे भयंकर छूत के रोग के फैलनेपर सैंकडो बीमारों की सेवा की और करवायी है। मानवता के किसी कार्य के लिए प्रेरणा निर्माण करने का आपश्रीमें प्रचंड बल था-मानो कोई जादू था। आपश्री का जीवन स्वच्छ, तपःपूत, कठोर संयमी और सत्यनिष्ठ था। आपश्रीने जीवनभर ज्ञान साधना की और शुद्धात्मवाद को समझाते हुए सबको खुलकर ज्ञान दिया। वि. सं. 1990 के सेमल (राजस्थान) चातुर्मास के बाद आपको अखिल भारतीय कीर्ति प्राप्त हो गयी और आगे चलकर लोगोंने आपको आग्रहपूर्वक आचार्यपद प्रदान किया। महामहिम प. पू. आचार्य श्री घासीलालजी म. सा. के ऊँची विद्वत्ता, की जिसमें प्रकर्षतः अभिव्यक्त हुई है, ऐसे विशिष्ट सर्वोत्तम कार्य का उल्लेख तो अभी बाकी ही है। यह है आपश्री का आगमोद्धारका कार्य / __एक बार क्या हुआ कि आपके गुरुदेव प्रख्यात आचार्य प. पू. जवाहरलालजी म. सा. एक आगम ग्रंथ पढ़ रहे थे। पढ़ते पढ़ते इस विचार से आपकी आँखों में आँस खड़े हो गये कि देखो हमें अभीतक श्वेताम्बर मूर्तिपूजकों के ग्रंथों का आधार रखना पड़ता है / उसी क्षण आपश्री ने जैन दिवाकर प. पू. घासीलालजी म. सा. को बुलाकर आगमोदार का कार्य सौंपा / आपश्री ने प्रथम दशवकालिक सूत्र पर टीका की रचना का कार्य कर के गुरुदेव के सामने रखा / आचार्यश्री ने उसे बहुत पसंद किया और आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। लेकिन कई कारणों से यह कार्य विशेष आगे न बढ़ सका / अंततः वि. सं. 2013. में अमदाबाद के सरसपुर उपाश्रय में स्थिर वास में रहने का निर्णय इसी कार्य के लिए. किया गया। सोलह वर्ष अथाक परिश्रम लेकर आपने श्वेताम्बर स्थानकवासी मान्यता के बत्तीस आगमों का संपादन किया। उनकी विस्तृत एवं विद्वत्तापूर्ण संस्कृत टीकाए लिखी तथा हिन्दी और गुजराती अनुवाद प्रस्तुत किया गया / आज ये सभी विशाल आगमग्रंथ छपे रूप में उपलब्ध हो गये हैं / यह कार्य केवल विशाल ही नहीं, श्रेष्ठतम भी है, ऊंची विद्वत्ता का निदर्शक है / अपने आप में विशिष्ट है और सुलझा हुआ विवरण तथा सरल भाषा शैली के कारण युगों युगों के लिये उपकारी है। - इस महत्त्वपूर्ण प्रशंसनीय विशाल कार्य के साथ आगमोद्धारक आचार्य श्री घासीलालजी म. सा. ने कुछ स्वतंत्र मौलिक ग्रंथों कीभी रचना की है। कुछ निम्नलिखित है 1. कल्पसूत्र ( आपश्री की स्वतंत्र रचना ) .. 2. तत्त्वार्थ सूत्र ( " " ") . .Page Navigation
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