Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi Part 04
Author(s): Girdhar Sharma, Parmeshwaranand Sharma
Publisher: Motilal Banrassidas Pvt Ltd

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Page 650
________________ गणपाठः। [६४७ चाफट्टकि बैल्वकि वैकि ( वैकि) आनुहारति ( आनुराहति ) पौष्करसादि श्रानुरोहति. आनुति प्रादोहनि नैमिधि प्राडाहति बान्धकि वैशीति आसिनासि पाहिसि आसुरी नैमिषि श्रासिबन्धकि पौहिप कारणुपालि वैकणि वैरकि वेहति । इति तौल्वल्यादिः॥ २६ ॥ ११४६ यस्कादिभ्यो गोत्रे (२-४-६३) यस्क लह्य द्रुह्य अयस्थूण (अयःस्थूण ) तृणकर्ण सदामत्त कम्बलहार बहिर्योग पर्णाढ क कर्णाटक पिण्डीजल वकसस्थ ( वकसक्थ ) वित्रि कुद्रि अजवस्ति मित्रयु रक्षोमुख जङ्घारथ उत्कास कटुक मथक ( मन्थक ) पुष्करट ( पुष्करसद् ) विषपुट उपरिमेखल क्रोष्टुकमान (कोष्टुमान ) कोष्टुपाद कोष्टुमाय शीर्षमाय खरप पदक वधूक भलन्दन भडिल भण्डिल भडित । एते यस्कादयः ॥ २७॥ ११४६ न गोपवनादिभ्यः । (२-२-६७) गोपवन शेयु ( शिप्र) बिन्दु भाजन अश्वावतान श्यामाक ( श्योनाक ) श्यामक श्यापर्ण । बिदाद्यन्तर्गणोऽयम् । (४-१-१०४) इति गोपवनादिः ॥२८॥ ११५० तिककितवादिभ्यो द्वन्द्धे । (२-४-६८) तिककितवाः वङ्करभण्डीरथाः उपकलमकाः पफकनरकाः बकनखगुदपरिणद्धाः उब्जककुभाः लङ्क. शान्तमुखाः उत्तरशलटाः कृष्णाजिनकृष्णसुन्दराः भ्रष्टककपिष्ठलाः अग्निवेशदशेरुकाः । एते तिककितवादयः ॥२६॥ ११५१ उपकादिभ्योऽन्यतरस्यामद्वन्द्व । (२-४-६६ ) उपक लमक भ्राष्ट्रक कपिष्ठल कृष्णाजिन कृष्णसुन्दर चूडारक आडारक गडुक उदङ्क सुधायुक अबन्धक पिङ्गलक पिष्टक सुपिष्ट ( सुपिष्ठ ) मयूरकर्ण खरीजङ्घ शलाथल पतञ्जल पदाल कठेरणि कुषोतक कशकृत्स्न (काशकृत्स्न ) निदाघ कलशीकण्ठ दामकण्ठ कृष्णपिङ्गल कर्णक पर्णक जटिरक बधिरक जन्तुक अनुलोम अनुपद प्रतिलोम अपजग्ध प्रतान अनभिहित कमक वराटक लेखात्र कमन्दक पिञ्जलक वर्णक मसूरकर्ण मदाघ कवन्तक कमन्तक कदामत्त दामकण्ठ । एते उपकादयः ॥ ३०॥ इति द्वितीयोऽध्यायः। तृतीयोऽध्यायः । २६६७ भृशादिभ्यो भुव्यच्वेर्लोपश्च हलः। (३-१-१२) भृश शीघ्र चपल मन्द पण्डित उत्सुक सुमनस् दुर्मनस् अभिमनस् उन्मनस् रहस् रोहत् रेहत् संश्चत् तृपत् शश्वत् भ्रमत् वेहत् शुचिस् शुचिवर्चस् अण्डर वर्चस् ओजस् सुरजस् अरजस् । एते भृशादयः ॥ ३१॥

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