Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi Part 04
Author(s): Girdhar Sharma, Parmeshwaranand Sharma
Publisher: Motilal Banrassidas Pvt Ltd

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Page 649
________________ ६४६] सिद्धान्तकौमुदीपरिशिष्टे कौशिकी) प्रवर्योपसदी शुक्लकृष्णौ इध्माबहिषी दीक्षातपसी [श्रद्धातपसी मेधातपसी] अध्ययनतपसी उलूखलमुसले श्राद्यवसाने श्रद्धामेधे ऋक्सामे वाङ्मनसे । ... इति दधिपयादीनि ।। २३ ॥ ८१६ अर्धर्चाः पुंसि च । (२-४-३१) अर्धर्च गोमय कषाय कार्षापण कुपत कुसप ( कुणप) कपाट शङ्ख गूथ यूथ ध्वज कबन्ध पद्म गृह सरक कंस दिवस यूष अन्धकार दण्ड कमण्डलु मण्ड भूत द्वीप द्यूत चक्र धर्म कर्मन् मोदक शतमान यान नख नखर चरण पुच्छ दाडिम हिम रजत सक्तु पिधान सार पात्र घृत सैन्धव औषध आढक चषक द्रोण खलीन पात्रीव षष्टिक वारबाण (वारवारण) प्रोथ कपित्य [ शुष्क ] शाल शील शुक्ल (शुल्क ) शीधु कवच रेणु [ ऋण ] कपट शीकर मुसल सुवर्ण वर्ण पूर्व चमस क्षीर कर्ष आकाश अष्टापद मङ्गल निधन निर्यास जृम्भ वृत्त पुस्त बुस्त दवेडित शृङ्ग निगड [ खल ] मूलक मधु मूल स्थूल शराव नाल वप्र विमान मुख प्रग्रीव शूल वज्र कटक कण्टक [ कर्पट ] शिखर कल्क ( वल्कल) नटमस्तक ( नाटमस्तक ) वलय कुसुम तृण पङ्क कुण्डल किरीट [ कुमुद ] अर्बुद अङ्कुश तिमिर श्राश्रय भूषण इक्कस (इष्वास ) मुकुल वसन्त तटाक (तडाग) पिटक विटङ्क विडा पिण्याक माष कोश फलक दिन दैवत पिनाक समर स्थाणु अनीक उपवास शाक कर्पास [विशाल ] चषाल (चखाल ) खण्ड दर विटप [रण बल मक] मृणाल हस्त आई हल [ सूत्र ] ताण्डव गाण्डीव मण्डप पटह सौध योध पार्श्व शरीर फल [छल ] पुर (पुरा) राष्ट्र अम्बर बिम्ब कुट्टिम मण्डल (कुक्कुट ) कुडप ककुद खण्डल तोमर तोरण मञ्चक पञ्चक पुल मध्य [बाल ] छाल वल्मीक वर्ष वन वसु देह उद्यान उद्योग स्नेह स्तन [ वन स्वर ] संगम निष्क क्षेम शूक क्षत्रपवित्र [ यौवन कलह ] मालक ( पालक ) मूषिक [ मण्डल वल्कल ] कुज (कुञ्ज ) विहार लोहित विषाण भवन अरण्य पुलिन दृढ श्रासन ऐरावत शुर्प तीर्थ लोमन (लोमश) तमाल लोह दराडक शपथ प्रतिसर दारु धनुस् मान वर्चस्क कूर्च तरडक मठ सहस्र ओदन प्रवाल शकट अपराह्न नीड शकल तण्डुल । इत्यधर्चादिः ॥ २४ ॥ १०८४ पैलादिभ्यश्च । (२-४-५६) पैल शालति सात्यकि सात्यकामि राहवि रावणि औदञ्चि औदवजि औदमेघि औदव्यज्रि (औदमज्जि औदमृज्जि) दैवस्थानि पैङ्गलोदायनि राहक्षति भौलिङ्गि राणि औदन्यि औद्गाहमानि औजिहानि औदशुद्धि तदाजाचाणः ( तद्राज)। प्राकृतिगणोऽयम् । इति पैलादिः ॥२५॥ १०८६ न तौल्वलिभ्यः । (२-४-६१) तौल्वलि धारणि पारणि रावणि दैलीपि देवति वार्कलि नैवति (नैवकि) देवमित्रि (देवमति ) देवज्ञि

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