Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi Part 04
Author(s): Girdhar Sharma, Parmeshwaranand Sharma
Publisher: Motilal Banrassidas Pvt Ltd

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Page 660
________________ गणपाठः। [६५७ श्रानडुह्य पाञ्चजन्य स्फिग (स्फिज्) कुम्भी कुन्ती जित्वन जीवन्त कुलिश पाण्डीवत् (आरडीवत ) जव जैत्र आकन (अनक ) इति कर्णादिः ॥ १४ ॥ (१४) सुतंगम मुनिचित विप्रचित्त महावित महापुत्र स्वन श्वेत गडिक ( खडिक ) शुक्र विन बीजावापिन् (बीजवापिन् ) अर्जुन श्वन अजिर जीव खण्डिन कर्ण विग्रह । इति सुतंगमादिः ॥ ६५ ॥ (१५) प्रगदिन् मगदिन् मददिन कविल खण्डित गदित चूडार मन्दार कोविदार । इति प्रगद्यादिः ॥६६॥ (१६) वराह पलाशा (पलाश ) शेरिष (शिरीष ) पिनद्ध निबद्ध बलाह स्थूल विदग्ध [ विजग्ध ] विभम [ निमम ] बाहु खदिर शर्करा । इति वराहादिः ॥ १७ ॥ (१७) कुमुद गोमथ रथकार दशग्राम अश्वत्थ शाल्मलि [ शिरीष ] मुनिस्थल कुण्डल कूट मधुकर्ण घासकुन्द शुचिकर्ण । इति कुमुदादिः॥८॥ १३०१ वरणादिभ्यश्च । (४-२-८२) वरणा जी शाल्मलि शुण्डि शयाण्डी पी ताम्रपर्णी गोद आलिजयायन जालपदी (जानपदी) जम्बू पुष्कर चम्पा पम्पा वल्गु उज्जयिनी गया मथुरा तक्षशिला उरसा गोमती वलभी। इति वरणादिः॥ १३०५ मध्वादिभ्यश्च । (४-२-८६) मधु बिस स्थाणु वेणु कर्कन्धु शमी करीर हिम किशरा शर्याण मरुत् वाली शर इष्टका आसुति शक्ति आसन्दी शकल शलाका आमिषी इक्षु रोमन् रुष्टि रुष्य तक्षशिला कड वट वेट । इति मध्वादिः ॥१०॥ १३०६ उत्करादिभ्यश्छः । (४-२-६०) उत्कर संफल शफर पिप्पल पिप्पलीमूल अश्मन् सुवर्ण स्वलाजिन तिक कितव अणक त्रैवण पिचुक अश्वत्थ काश क्षुद भस्त्रा शाल जन्या अजिर चर्मन् उत्क्रोश क्षान्त खदिर शूर्पणाय श्यावनाय नैवाकव तृण वृक्ष शाक पलाश विजिगीषा अनेक आतप फल संपर अर्क गर्त अग्नि वैराणक इडा अरण्य निशान्त पण नीचायक शंकर अवरोहित क्षार विशाल वेत्र अरोहण खण्ड वातागार मन्त्रणाई इन्द्रवृक्ष नितान्तक्ष (नितान्तावृक्ष) आवृक्ष । इत्युत्करादिः॥ १०१॥ १३१० नडादीनां कुक्च। (४-२-६१) नड प्लक्ष बिल्व येणु वेत्र वेतस इक्षु काष्ठ कपोत तृण । क्रुच्चा ह्रस्वत्वं च । तक्षन्नलोपश्च । इति नडादिः ।। १०२ ॥ १३१५ कठ्यादिभ्यो ढकञ् । (४-२-६५) कत्रि उम्भि पुष्कर

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