Book Title: Laghu Kshetra Samsas Granth
Author(s): Charitrashreeji
Publisher: Kumudchandra Jesingbhai Vora

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Page 480
________________ श्रीरत्नशेखरसूरिकृत — श्रीलघुक्षेत्रसमासप्रकरणम् ॥ वीरं जयसेहरपय-पट्ठिअं पणमिऊण सुगुरुं च । मंदु त्ति ससरणड्डा, खित्तविआराऽणुमुंछामि ॥१॥ तिरिएगरज्जुखित्ते, असंखदीवोदही ते सव्वे । उद्धारपलियपणवीस - कोडाकोडी समयतुल्ला ऊ ॥२॥ कुरुसग दिणा विअंगुल - रोमे सगवार विहिअअडखंडे । बावण्णसयं सहसा, सगणउई वीस लक्खाणू 11311 ते धूला पल्लेवि हु, संखिज्जा चेव हुंति सव्वेऽवि । ते इर्किक असंखे, सुहुमे खंडे पकप्पेह 11811 सुहुमाणु णिचियउस्से - हंगुलचउकोसपक्ति घणवट्टे । पइसमयमणुग्गह-निट्ठिअम्मि उद्धारपलिउ ति ॥५॥ पढमो जंबू बीओ, धायइसंडो अ पुक्खरो तइओ । वारुणिवरो चउत्थो, खीखरो पंचमो दीवो ॥६॥ वरदीवो छट्ठो, इक्खुरसो सत्तमो अ अट्टमओ । नंदीसरो अ अरुणो, नवमो इच्चा असं खिज्जा ॥७॥

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