Book Title: Laghu Kshetra Samsas Granth
Author(s): Charitrashreeji
Publisher: Kumudchandra Jesingbhai Vora
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શ્રી લઘુક્ષેત્રસમાસ પ્રકરણમાં गंगा सिंधू रत्ता, रत्तवई बाहिरं नईचउकं । बहिदहपुव्वावरदार-वित्थरं वहइ गिरिसिहरे ॥४८॥ पंचसय गंतु नियगा-वत्तणकूडाउ बहिमुहं वलइ । पणसयतेवीसेहिं, साहियतिकलाहिं सिहराओ ॥४९॥ निवडइ मगरमुहोवम-चयरामयनिभियाइवयरतले । नियगे निवायकुंडे, मुत्तावलिसमप्पवाहेण ॥५०॥
दहदारवित्थराओ, वित्थरपन्नासभागजड्डाओ । जडत्ताओ चउगुण-दीहाओ सव्वअिब्भीओ ॥५१॥ कुंडतो अडजोअण, पिठुलो जलउवरि कोसदुगमुच्चो । वेइजुओ नइदेवी-दीवो दहदेविसमभवणो ॥५२॥ जोअणसट्ठिपिहुत्ता, सवायछप्पिहुल वेइतिदुवारा । एए दसुंड कुंडा, एवं अन्ने वि नवरं ते ॥५३॥ एसिं वित्थारतिगें, पडुच्च समदुगुगचउगुणद्वगुणा । चउस हिसोलचउदो, कुंडा सव्वेऽवि इह नवई ॥५४॥ एअंच नइचउकं, कुंडाओ बहिवारपरिबूढं । सगसहसनइसमेअं, वेअट्टगिरि पि भिंदेइ ॥५५॥ तत्तो बाहिरखित्त-द्व मन्झओ वलइ पुधअवरमुहं । नइसत्तसहससहिअं जगइतलेणं उदहिमेइ ॥५६॥ धुरि कुंडदुवारसमा, पज्जते दसगुणा य पिहुलत्ते । सव्वत्थ महनईओ, वित्थरपन्नासभागुंडा ॥५७॥

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