Book Title: Laghu Kshetra Samsas Granth
Author(s): Charitrashreeji
Publisher: Kumudchandra Jesingbhai Vora
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શ્રી લઘુક્ષેત્રસમાસ પ્રકરણમ.
४१२
बहिरवंडतो बारस-दीहा नव वित्थडा अउन्झपुरी । सा लवणा वेअडूढा, चउदहिअसयं चिगारकला ॥८॥ चक्किवसनइपवेसे, तित्थदुगं मागहो पभासो अ । ताणंतो वरदामो, इह सव्वे बिडुत्तरसयंत्ति ॥ ८९ ॥ भरहेरवए छछअर-मयाक्सप्पिणिउसप्पिणीरूवं । परिभमइ कालचकं, दुवालसारं सया वि कमा ॥९॥
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सुसमसुसमा य सुसमा, सुसमदुसमा य दुसमंसुसमा य । दुसमा य दुसमदुसमा, कमुक्कमा दुसु वि अरछकं ॥ ९१ ॥ पुव्युत्तपल्लि समसय-अणुगहणा निट्ठिए हवइ पलिओ । दसकोडिकोडिपलिए-हिं सागरो होइ कालस्स ॥ ९२ ॥ सागरचउतिदुकोडा-कोडिमिए अरतिगे नराण कमा । आऊ तिदुइगपलिआ, तिदुइगकोसा तणुच्चत्तं ॥ ९३ ॥ तिदुइगदिणेहिं तुवरि-चयरामलमित्तु तेसिमाहारो । पिट्ठकरंडा दोसय, छप्पन्ना तद्दलं च दलं ॥९४ ॥ गुणवन्नदिणे तह पन-स्पनरअहिए अवच्चपालणया ।
अवि सयलजिआ जुअला, सुमणसुरूवा य सुरगइआ ॥९५ ॥ तेसि मत्तंग भिंगा, तुडिअंगा जोई दीव चित्तंगा । चित्तरसा मणिअंगा, गेहागारा अणिअयक्खा ॥ १६ ॥ पाणं भायण पिच्छण, रविपहदीवपहकुसुममाहारो । भूसण गिहवत्थासण, कप्पदुमा दसविहा दिति ॥ ९७ ॥
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