Book Title: Laghu Kshetra Samsas Granth
Author(s): Charitrashreeji
Publisher: Kumudchandra Jesingbhai Vora
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શ્રી લઘુક્ષેત્રસમાસ પ્રકરણમાં करिकूडकुंडनइदह-कुरुकंचणयमलसमविअढेसु । जिणभवणविसंवाओ, जो तं जाणंति गीअत्था ॥ ७८ ॥ पुव्वावरजलहिता, दसुच्चदसपिहुलमेहलचउक्का । पणवीसुच्चा पन्नासतीसदसजोअणपिहुत्ता ॥ ७९ ॥ वेईहिं परिक्वित्ता, सस्वयरपुरपन्नसट्टिसेणिदुगा। सदिसिंदलोगपालो-वभोगिउवरिल्लमेहलया ॥ ८ ॥ दु दु खंड विहिअ भरहे-रवया दु दु गुरुगुहायरुप्पमया । दो दीहा वेअडा, तहा दुतीसं च विजएसु ॥ ८१ ॥ नवरं ते विजयंता सखयरपणपन्नपुर दुसेणीआ । एवं खयरपुराई, सगतीससयाई चालाई ॥ ८२ ॥ गिरिवित्थरदीहाओ, अड्डुच्च चउ पिहुपवेसदाराओ बारसपिहुला अड्ड-चयाउ वेअड्ढदुगुहाओ ॥ ८३ ॥ तम्मज्झदुजोअणअंतराउ ति ति वित्थराओ दुनईओ । उम्मग्गनिमग्गाओ, कडगाउ महानइगयाओ ॥ ८४ ॥ इह पइभित्तिं गुणव-न्नमंडले लिहइ चक्कि दु दु समुहे । पणसयधणुहपमाणे, वारेगडजोअणुज्जोए ॥ ८५॥ सा तमिसगुहा जीए, चक्की पविसेइ मज्झखंडतो । उसहं अंकिअ सो जीए वलइ सा खंडगपवाया ॥ ८६ ॥
कयमाल-नट्टमालय-सुराओ वद्धइनिबद्धसलिलाओ । जा चक्की ता चिट्ठति, ताओ उग्धडिअदाराओ ॥ ८७॥

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