Book Title: Laghu Kshetra Samsas Granth
Author(s): Charitrashreeji
Publisher: Kumudchandra Jesingbhai Vora

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Page 498
________________ શ્રી લધુત્રસમાસપ્રકરણમાં पइमंडल दिणहाणी, दुण्ह मुहुत्तेगसट्ठिभागाणं । अंते बारमुहुत्तं, दिणं निसा तस्स विवरीआ ॥ १७७ ॥ उदयत्तरि बाहि, सहसा तेसट्टि छसय तेसट्ठा । तह इगससिपरिवारे, रिक्खडवीसाडसीइ गहा ॥ १७८ ॥ छासद्विसहस नवसय, पणहत्तरि तारकोडीकोडीणं । सण्णंतरेण मुस्से-हंगुलमाणेण वा हुंति ॥ १७९ ॥ गहरिक्वतारगाणं, संखं ससिसंखसंगुणं काउं । इच्छिअदीवुद हिम्मि य, गहाइमाणं विआणेह ॥ १८० ।। चउ चउ बारस बारस, लवणे तह धायइम्मि ससिसूरा । परओदहिदीवेसु य, तिगुणा पुग्विल्लसंजुत्ता ॥ १८१॥ नरखित्तं जा समसे-णिचारिणो सिग्धसिग्धतरगइणो । दिद्विपहमिति खित्ता-णुमाणओ ते नराणेवं ॥ १८२ ॥ पणसय सत्तत्तीसा, चउतीससहस्स लक्खइगवीसा । पुक्खरदीवड्ढनरा, पुव्वेण ऽवरेण पिच्छंति ॥ १८३॥ नरखित्तबहिं ससिरवि-संखा करणंतरेहिं वा होइ । तह तत्थ य जोइसिआ, अचलद्धपमाणसुविमाणा ॥ १८४ ॥ जंबूपरिहि तिलक्खा, सोलसहसदुसय पउणअडवीसा । धणुअडवीससयंगुल-तेरससइढा समहिआ य ॥ १८५ ॥ सगसयनउआकोडी, लक्खाछप्पन्न चउणवइसहसा । सइढसयं पउणदुको-स सड्ढबासढिकर गणियं ॥ १८६ ।।

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