Book Title: Kuvalayamala Part 2 Author(s): Bhuvanbhanusuri Publisher: Divya Darshan Trust View full book textPage 7
________________ कौन कौन मान करते हैं : जिस अभिमान के पीछे दुनिया मर रही है उसके भयानक परिणामों का विचार कर लेना चाहिए। अभिमान किसे नहीं है ? छोटे बच्चे को भी यह पकड़े हुए दिखाई देता है। माता उसे जरा सा डाँटती है तो उसका चेहरा उदास हो जाता है। उदास क्यों? उसे अपना प्रिय मान घायल होता मालूम होता है; एक भिखारी तक मान-कषाय से मुक्त नहीं । गाँठ में कुछ नहीं है, न घर है न परिवार, पूरे एक जोडी कपडे तक नहीं, फिर भी मान अवश्य है । अतः यदि दूसरा भिखारी रोब दिखाने आये तो उसे यह धमकाता है। और यदि दाता तिरस्कारपूर्वक दे तो बोल नहीं सकता, पर दिल तो आहत होता है। भीतर अभिमान न होता तो धमकाने या दिल आहत होने की बात क्या थी? यह सब मान कराता है। बच्चे से बूढे तक और भिखारी से लगाकर बडे धनवान या राजा तक को यह मान लिपटा हुआ है। फिर चाहे उस मान से कुछ हाथ न आता हो, फिर भी उसे छोडने की बात नहीं ! इसलिए मान कर कर के बरबाद होते जाओ। इस तरह मान के पीछे दुनिया मर रही है। मरना याने और दूसरा क्या? बरबादी पर बरबादी को निमंत्रण देते रहना यही मरना है। कैसी कैसी बरबादी होती है सो बताते हुए आचार्य महाराज कहते हैं कि : (१) मान संताप करवानेवाला है। मन में जब अभिमान सक्रिय होता है तब शांति-स्वस्थता उड़ जाती है, बेचैनी पैदा होती है। कुल का, जाति का, बल का, धन का, विद्या का, अधिकार का,....आदि आदि किसी भी प्रकार का अभिमान मन में आते ही अशांति हलचल करने लगती है। - "मैं कुछ हूँ, मैं क्या कम हूँ ? वह मेरी बेइज्जती कैसे कर सकता है ? वह दूसरा मुझ से बढ़कर कैसे हो सकता है ? लोग क्यों मुझे नहीं मानते?"....यह क्या है ? अशांति, संताप की चेष्टा है। ऐसे ही प्रशंसा सुनकर खुद ही अपने विषय में उन्मादमय विचार करता है - 'बराबर है, मैं ऐसा अच्छा ही हूँ। यह उन्माद भी एक अस्वस्थता है। कोई हमारा न माने तो अशांति आती है कि, 'ऐं ? कैसे नहीं मानता?' यह आक्रोश होता है, यह भी अस्वस्थता है। बड़े राजा रावण ने वाली राजा को कहला भेजा कि 'तू मेरी आज्ञा मान ले।' बाली ने साफ साफ इनकार कर दिया । रावण के पास धन, मान-सन्मान, या सुख की कोई कमी नहीं थी फिर अभिमान-वश मन को लगा कि 'एं? वाली जैसा छोटा राजा भी नहीं माने?' अब यह जलन-अशांति कैसी कि जो पास रही हुई महासुख-समृद्धि में भी चैन न लेने दे । दिन रात हृदय धधकता रहे । अगला भी अपनी किसी शक्ति के आधार पर इनकार करता होगा-इसका भी विचार नहीं आता । अभिमान का संताप चीज ही ऐसी है कि मानो कह रही हो-सब कुछ अच्छा धरा रहने दो, इस वक्त तो बैचेन बनो।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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