Book Title: Kumarpal Prabandh
Author(s): Jinendrasuri,
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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अभ्यर्च्य कुसुमैर्हेमैश्चैत्यवन्दनमादधे ॥ ४ ॥ रथात्तां स्वयमुत्तार्य करीन्द्रमधिरोप्य च । पुण्यलक्ष्मीमिवात्मीयां, मध्ये सौध कुमारपाल समानयत् ॥ ५ ॥ अन्तः क्रीडाल चैत्य विधाप्य स्फाटिकं नवम् । तत्र तां पूजयामास, त्रिसन्ध्य ं भूमिवासवः ॥ ६ ॥ तत्प्रभावेण तस्यर्द्धिरवर्धिष्ट दिने दिने । एकाग्रमनसो नित्य, श्रीमज्जैनेन्द्रशासने ।। ७ ।। प्रतिमां तां नमस्कर्तुं पुण्डरीकादितीर्थवत् । समापतन् परोलक्षाः, दवीयांसोऽपि धार्मिकाः ।। ८ ।। एवं सर्वात्मना जैनं शासनं भासयन्नृपः । जैनधर्ममयो जज्ञे स विज्ञेश्वरमण्डनम् ।। ९ ।। सा प्रतिमा सम्प्रति रामसैन्येऽस्तीति लोकोक्तिः ॥
।।२१४।।
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इय हेमसूरिमुणिपुंगवस्स सुणिऊण देसणं राया । जाणियसमत्ततत्तो, जिणधम्मपरायणो जाओ ।। १ ।। तो पञ्चनमुकारं, सुमरंतो जग्गए रयणिसेसे । चितइ य दोवि हियए, देवगुरुधम्मपडिवति ॥ २ ॥ काळण कायसुद्धि, कुसुमामिसथोत्तविविपूयाए । पुञ्जइ जिणपडिमाओ, पंचहि दंडेहिं वंदेइ || ३ || निचं पच्चक्खाणं, कुणइ जहासत्ति सत्तगुणनिलओ । सयलजयलच्छितिलओ, तिलयावसरंमि उवविसइ ॥ ४ ॥ करिकंधराधिरूढो, समत्तसामंतमंतिपरियरिओ । वच्चइ जिणिदभवणं, विहिपुत्रं तत्थ पविसेइ ।। ५ ।। अट्टप्पयारपूयाइ पूइउं वीयरायपडिमाओ । पणमइ महिनिहियसिरो, थुणइ पवित्तहिं थोत्तेहि ॥ ६ ॥ गुरुहेमचंदचलणे, चंदणकप्पूरकणयकमलेहि । संपूईऊण पणमइ, पञ्चक्खाणं पयासेइ ।। ७ ।। गुरूपुरओ उवविसिउं परलोयसुहावहं सुणइ धम्मं । गंतूण गिहं वियरइ, जणस्स विन्नित्तियावसरं • ।। ८ ।। विहियग्गकूरथालो, पुणोवि घरचेइयाइं अच्चे । कयउचियसंविभागों, भुंजेइ पवित्तमाहारं ॥ ९ ॥ भुत्तुत्तरं सहाए, वियारए सह बुहेहि सत्थत्थं । अत्थाणीमंडवमंडणंमि सिंहासने ठाइ ॥ १० ॥ अट्ठमिचउदसिव, पुणोवि
प्रबन्धः ।
।। २१४ ।।

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