Book Title: Kitab Charcha Patra Author(s): Shantivijay Publisher: Dolatram Khubchand Sakin View full book textPage 3
________________ [चर्चापत्र-] (जैनश्वेतांबरधर्मोपदेष्ठा-विद्यासागर-न्यायरत्न महाराज-शांतिविजयजी तर्फसे.) [इसमे दलिचंद-सुखराज,-जेसिंग सांकलचंद,-और दक्षिणनिवासीके लेखका जवाबदर्ज है, बखूबीदेखलो, :-] F( कवित्त,-) अरिहंतके जपेसे अष्टकर्मको विनाशहोत-सिद्धके जपेसेसब सिद्धपदपाइये, भाचारजकेजपेसे आतमविशुद्धहोत-उपाध्यायके जपेसेसदाउंचपदपाइये, साधुकेजपेसे सर्वकामसिद्धहोत-अष्टसिद्ध नवनिधदायककहाइये, कहतहैविनोदिलालमनवचनतिहुंकाल-परमेष्टिकेध्यानसे परमपदपाइये,१ ___ (दोहा.) ग्यारह अंग बारहउपांग-चौदहपूरब सार; .. याहुमेते निकसो-महामंत्र नवकार,:- १. जिनवानी जिने रुचकरी-पाइतत्वपरतीत, जिने जिनवानी जानीनही-भटकेभवभयभीत, २ मुनकर वानी जैनकी-क्यौनधरे भनधीर, धर्म विनायह जीवकी-कौनहरे भवपीर, माला फेरत हाथमें-जीभहिलतमुखमांहि, मनुवा फिरत बजारमें-येभी समरन नाहि. ४ ३ कानहर भवपार,Page Navigation
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