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आलेखित प्राप्त है जो कि राजकीय पुरातत्त्व एवं संग्रहालय चित्तौड़ में सुरक्षित है। कमलाकार छः पंखुड़ियों में चित्र-काव्य के रूप में आलेखित है। चित्रकाव्यों के रूप में यह प्रतिष्ठा लेख सर्वप्रथम प्राप्त होता है। लेखाङ्क ५ - नवाङ्गवृत्तिकार श्री अभयदेवसूरि के सन्तानीय श्रीचन्द्रसूरि, लेखांक ७ में अभयदेवसूरि के सन्तानीय धर्मघोषसूरि, लेखांक ९ नवाङ्गवृत्तिकार अभयदेवसूरि के सन्तानीय श्री हेमचन्द्रसूरि के शिष्य श्री धर्मघोषसूरि का उल्लेख है। सम्भव है श्री अभयदेवसूरि की मूल पट्ट-परम्परा के अतिरिक्त उनके अन्य शिष्यों की परम्परा भी चली हो और उसी में ये आचार्य भी हुए हों। लेखाङ्क १२ से १६, २० के लेख श्री जिनपतिसूरि के शिष्य श्री जिनेश्वरसूरि द्वितीय, लेखाङ्क २३ से ३६ तक श्री जिनप्रबोधसूरि द्वारा प्रतिष्ठित, लेखाङ्क ३७ से ४६ तक कलिकालकेवली श्री जिनचन्द्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठित, लेखाङ्क ४७ से ७१ एवं ७४ से ७८ तक के लेख युगप्रधान दादा श्री जिनकुशलसूरि द्वारा प्रतिष्ठित हैं और ७९ से ८१ तक के लेखाङ्क जिनकुशलसूरि के पट्टधर जिनपद्मसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित हैं। खरतरगच्छ बृहद् गुर्वावलि में जिनपालोपाध्याय (१३०७) और किसी विज्ञ विद्वान् द्वारा (सम्वत् १३९५ तक) उल्लिखित प्रतिष्ठाओं के समय की ये प्रतिमाएँ हैं। लेखाङ्क ८६ - यह राजगृह पार्श्वनाथ मंदिर की विक्रम सम्वत् १४१२ की प्रशस्ति है। इसमें श्री उद्योतनसूरि से लेकर श्री जिनलब्धिसूरि के पट्टधर श्री जिनचन्द्रसूरि तक के आचार्यों की परम्परा के नाम भी दिये हैं। इसमें सुरत्राण साहि पेरोज के द्वारा नियुक्त मलिकवय नामक मण्डलेश्वर के समय में उसके सेवक सहणास दूरदीन के सहयोग से इस मन्दिर का निर्माण हआ है। निर्माणकर्ता हैं - मंत्रिदलीय सहजपाल के वंशज ठक्कर वच्छराज और देवराज। श्री भुवनहितोपाध्याय (श्री भुवनहिताचार्य) ने इसकी प्रतिष्ठा करवाई थी। लेखाङ्क २६ - सम्वत् १३३४ में जिनप्रबोधसूरि द्वारा प्रतिष्ठित जिनदत्तसूरि मूर्ति, लेखाङ्क ३८सम्वत् १३५१ में जिनप्रबोधसूरि के शिष्य श्री जिनचन्द्रसूरि प्रतिष्ठित जिनप्रबोधसूरि मूर्ति । लेखाङ्क ४१ - सम्वत् १३५४ में प्रतिष्ठित श्री जिनचन्द्रसूरि मूर्ति, लेखाङ्क ५० - सम्वत् १३७९ में श्री जिनकुशलसूरि द्वारा प्रतिष्ठित जिनरत्नसूरि की मूर्तियाँ, लेखाङ्क ५२ - इसी सम्वत् में जिनकुशलसूरि द्वारा प्रतिष्ठित जिनचन्द्रसूरि मूर्ति, लेखाङ्क ६६ - सम्वत् १३८१ में जिनकुशलसूरि द्वारा प्रतिष्ठित जिनप्रबोधसूरि मूर्ति, लेखाङ्क १४१ - सम्वत् १४६९ में जिनवर्धनसूरि द्वारा प्रतिष्ठित जिनराजसूरि की मूर्ति और लेखाङ्क १४५ - इसी वर्ष में जिनवर्धनसूरि द्वारा प्रतिष्ठित मेरुनन्दनोपाध्याय मूर्ति आदि प्राचीनतम गुरु मूर्तियाँ हैं। लेखाङ्क १४६ - लक्ष्मणविहार पार्श्वनाथ मंदिर, जैसलमेर की प्रशस्ति है। इस प्रशस्ति की रचना सम्वत् १४७३ में कीर्तिराज (कीर्तिरत्नसूरि) ने की और इसका संशोधन श्री जयसागरोपाध्याय ने किया। इस प्रशस्ति में जैसलमेर के महाराजा जैत्रसिंह से लेकर लक्ष्मणसिंह तक की राज
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