________________
आभार
इस संग्रह में विशेष रूप से आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरि, श्री विजयधर्मसूरि, मुनि श्री जयन्तविजय, मुनि श्री कान्तिसागर, श्री पूरणचन्द्र नाहर, श्री अगरचन्द भँवरलाल नाहटा आदि की पुस्तकों का उपयोग किया गया हैं, साथ ही जिन-जिन लेखकों की पुस्तकों से लेख लिए गए है उन-उन लेखकों और प्रकाशकों का मैं हृदय से आभारी हूँ। इस संग्रह में जो प्राचीन चित्र दिये गए हैं उसके लिए मैं स्वर्गीय आचार्य श्री विजयकलापूर्णसूरिजी महाराज, आगमप्रज्ञ श्री जम्बूविजयजी महाराज, श्री जैन श्वेताम्बर लौद्रवा जैसलमेर पार्श्वनाथ ट्रस्ट, जैसलमेर के अध्यक्ष श्री किशनचन्दजी बोहरा, हाला संघ के अध्यक्ष श्री रूपचन्दजी भंसाली, डॉ० नारायणचन्दजी मेहता और श्री महेन्द्र कुमार कोठारी आदि के प्रति भी कृतज्ञता प्रकट करता हूँ।
मेरे आत्मीय महोपाध्याय श्री ललितप्रभसागरजी ने मेरे अनुरोध को स्वीकार कर प्रस्तावना लिखी है, उसके लिए भी मैं उनका कृतज्ञ हूँ।
___मेरे प्रिय डॉ० शिवप्रसाद, सम्पादक श्रमण, वाराणसी ने मेरे अनुरोध पर लेखों का चयन कर जो मुझे सहयोग प्रदान किया, उसके लिए मैं उन्हें हृदय से साधुवाद देता हूँ।
पूज्य गुरुदेवों की कृपा है कि उनके ही गच्छ का कार्य होने से उनकी ही अनभ्र कृपावृष्टि हुई। उसी के फलस्वरूप यह ग्रन्थ भी आपके कर-कमलों में पहुंच रहा है।
मेरे परमाराध्य पूज्य स्वर्गीय गुरुदेव श्री जिनमणिसागरसूरिजी महाराज के अमोघ आशीर्वाद के फलस्वरूप ही मैं इस कार्य को सम्पन्न करने में सफल हो सका। :
श्री देवेन्द्रराजजी मेहता, संस्थापक, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर, श्री मंजुल जैन, मैंनेजिंग ट्रस्टी, एम.एस.पी.एस.जी. चेरिटेबल ट्रस्ट, जयपुर और डॉ० यू. सी. जैन, महामन्त्री, श्री जिनकान्तिसागरसूरि स्मारक ट्रस्ट, माण्डवला को भी मैं हार्दिक धन्यवाद देता हूँ कि इन तीनों संस्थानों के सहयोग से यह ग्रन्थ पाठकों के कर-कमलों में पहुंच रहा है।
लेजर टाईप सैटिंग में नूतन चौधरी, श्याम अग्रवाल और नयनाभिराम मुद्रण एवं बाईंडिंग के लिए श्री महावीरजी गोयल, श्री निर्मलजी गोयल, प्रोपराइटर पापुलर प्रिन्टर्स, जयपुर को भी हार्दिक धन्यवाद देता हूँ।
___ अन्त में आत्मीय अनुज श्री सुरेन्द्र बोथरा की सतत प्रेरणा से मैं लेखन कार्य की ओर पुनः प्रवृत्त हो सका, और आयुष्मान मंजुल, पुत्रवधु नीलम, पुत्र विशाल, पौत्री तितिक्षा और पौत्र वर्धमान के स्नेह, समर्पण और सहयोग के लिए ढेर सारे साधुवाद और अन्तरंग आशीर्वाद। दिनांक : १०-०१-२००५
- म. विनयसागर पौष वदि सोमवती अमावस्या, सम्वत् २०६१, जयपुर
XXXII
पुरोवाक्
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org