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२. दूसरे परिशिष्ट में ग्राम-नगरों की सूची के साथ यह लेख किस मंदिर की मूर्ति
का है, उसका नाम दिया है और उसके साथ ही कितने लेख इस मंदिर की मूर्तियों के है? उसके लेखांक दिये गये हैं। इसमें जिन आचार्यों, उपाध्यायों और साधुओं के द्वारा मूर्ति की अंजनशलाका/ प्रतिष्ठा की गई, उन समस्त मुनियों, आचार्यों की सूची नामानुक्रमणिका के साथ दी गई है। इस सूची में जिनचन्द्रसूरि, जिनसिंहसूरि, जिनराजसूरि आदि कई शाखाओं के आचार्यों के नाम प्राप्त होते हैं, उनको स्पष्ट करने के लिए (पट्टधर या शाखा) के नाम का उल्लेख किया गया है, जिससे पाठकों को देखने में सुविधा हो। इसमें लेखस्थ राजाओं, युवराजों, ठाकुरों, मंत्रियो और पदधारियों के नाम अकारानुक्रम से दिये गए हैं। लेखों में यत्र-तत्र ग्राम और नगरों के नाम भी प्राप्त होते हैं अर्थात् उस नगरनिवासी श्रावकं ने यह मूर्ति भराई है अथवा इस मूर्ति की प्रतिष्ठा उस स्थान पर हुई है, उसके सूचक हैं। इन नामों को भी अकारानुक्रम से दिया गया है। मूर्ति निर्माता उपासक किस ज्ञाति का था? उन ज्ञातियों के नाम भी अकारानुक्रम
से दिये गये हैं। ७. इसी प्रकार मूर्ति-निर्माता या मूर्ति भराने वाला श्रावक किस गोत्र का था? उन
गोत्रों की सूची भी अकारानुक्रम से दी गई है। आचार्यों, श्रीपूज्यों, मुनिगणों और यतिगणों की मूर्तियाँ और चरण भी उनकी स्मृति में स्थापित और प्रतिष्ठित किये गये थे। उन सबके प्राप्त लेख भी इनमें संग्रहित किये गये हैं। इससे उन आचार्यों का, मुनिजनों का समय और गुरु का निर्धारण करने में इतिहासविदों को अत्यन्त सुविधा रहेगी। . खरतरगच्छ की जो १० शाखाएँ - मधुकर, रुद्रपल्लीय, लघु, पिप्पलक, आद्यपक्षीय, बेगड़, भावहर्षीय, आचार्य, जिनरंगसूरि और मंडोवरा शाखा एवं ४ उपशाखाओं - क्षेमकीर्ति, सागरचन्द्रसूरि, जिनभद्रसूरि और कीर्तिरत्नसूरि के भी जो लेख प्राप्त होते हैं वे इसमें संकलित किये गए हैं।
- मधुकर शाखा जो खरतरगच्छ की ही एक शाखा मानी जाती है उसका कोई इतिवृत्त प्राप्त नहीं होता है। जो. १०-१५ लेख प्राप्त होते हैं उनमें नवांगवृत्तिकार अभयदेवसूरि संतानीय शब्द दृष्टिगोचर होते है। अतः संभव है कि यह शाखा अभयदेवसूरि के शिष्यों में से ही प्रारम्भ हुई हो। इस शाखा के लेख भी इसमें सम्मिलित किए गए हैं।
पुरोवाक्
XXXI.
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