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लेखाङ्क २५७४ सम्वत् १९७२ में मद्रास के साहुकार पेठ में श्री चन्द्रप्रभ स्वामी के बिम्ब की प्रतिष्ठा श्री जिनहेमसूरि के पट्टधर श्री जिनसिद्धिसूरि ने करवाई थी । विधिकारक थे यति किशोरचन्द्र के शिष्य मनसाचन्द्र ।
लेखाङ्क २६२९ सम्वत् १९९७ में क्षेमकीर्ति शाखा के धर्मशीलगणि के प्रशिष्य और कुशलनिधानगणि के शिष्य महोपाध्याय ऋद्धिसारगणि की मूर्ति की स्थापना यति खेमचन्दजी आदि ने करवाई थी और प्रतिष्ठा जिनचारित्रसूरिजी के राज्य में हुई थी। बीकानेर नरेश गंगासिंहजी का राज्यकाल था । ऋद्धिसारगणि निर्मित्त १५ पुस्तकों के भी नाम दिये गये हैं । लेखाङ्क २६८६ विक्रम सम्वत् २०१३ बीकानेर निवासी कोचर गोत्रीय सेठ भैरुदान के पुत्र प्रसन्नचन्द्र ने दादा जिनदत्तसूरि की मूर्ति बनवाकर विजयवल्लभसूरि के पट्टधर विजय समुद्रसूरि से प्रतिष्ठा करवाई |
प्रकाशन का इतिहास
लगभग ३०-३५ वर्षों से मेरी यह अभिलाषा थी कि खरतरगच्छ जो वर्तमान गच्छों में सब से प्राचीन गच्छ है, इसका प्रारम्भ से लेकर आज तक का इतिहास - सम्मत कोई भी प्रामाणिक ग्रंथ उपलब्ध नहीं है, अतः इसका प्रामाणिक इतिहास लिखा जाए। इस गच्छ के मनीषियों ने उग्रतम साध्वाचार का पालन करते हुए, समाज के उत्कर्ष को ध्यान में रखते हुए, अपने उपदेशों से सहस्रों जिन मंदिरों का उद्धार और सहस्रों जिन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा कर जिनेश्वर देवों की पूजा-अर्चना का जो मार्ग प्रशस्त किया है उन प्रतिमाओं के प्रतिष्ठा लेखों का संकलन कर प्रकाशन किया जाए। इसी प्रकार निरन्तर श्रुतोपासना करते हुए जो विपुल साहित्य-निर्माण किया है, वह भी साहित्य जगत् के समक्ष रखा जाए। समय परिपक्व न होने के कारण उक्त भावना केवल भावना ही रही, कार्यरूप में परिणत न हो सकी। हाँ, मैं निरन्तर इस ओर सचेष्ट रहा, सामग्री संकलित करता रहा और आज वह अभिलाषा पूर्ण होने जा रही है। लगन और परिश्रम के साथ तैयार किया हुआ खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास दो माह पूर्व ही प्रकाशित हुआ है।
प्रस्तुत ग्रन्थ
स्वर्गीय श्री पूरणचन्दजी नाहर के जैन लेख संग्रह से लेकर प्रतिमा लेखों से सम्बन्धित पुस्तकों से खरतरगच्छ के आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमा लेखों का संग्रह किया गया है जो कि १२वीं शताब्दी से लेकर विक्रम सम्वत् २००० तक के लेखों का संकलन है । जिन-जिन पुस्तकों से मैंने लेखों का चयन किया है, उनकी सूची परिशिष्ट नं० १ में द्रष्टव्य है। तत्पश्चात् के कुछ लेख श्री भँवरलालजी नाहटा के अप्रकाशित लेखों से संकलित किये गये हैं। कुछ लेख हैदराबाद, नागपुर इत्यादि के मेरे द्वारा संकलित हैं। इस प्रकार कुल २७६० लेखों का इस पुस्तक में संग्रह किया गया है ।
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पुरोवाक्
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