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उदयपुर के महाराणा, कोटा के महाराव, बीकानेर, किशनगढ़ और बूंदी के महाराजा तथा इंदौर के होलकर, बाफनाओं के घर पधारे। अंग्रेजों ने इनको सेठ पदवी दे रखी थी। बहादरमलजी ने जैसलमेर संघ में लाहणी की। संघ की सुरक्षा के लिए ४ तोपें और ४००० सैनिक साथ में थे। जिसमें उदयपुर के राणाजी, कोटा के महाराव, जोधपुर के महाराजा, जैसलमेर के रावल, टोंक के नवाब आदि के सैनिक नगारे निशान के साथ थे। संघ में ७ पालकी, ४ हाथी, ५१ म्याना, १०० रथ, ४०० बैलगाड़ियाँ, १५०० ऊँट यह तो संघपति की ओर से थे। इस संघ यात्रा में १३,००,००० रुपये व्यय हुए। संघपति ने धुलेवा में नोबत खाना और आभूषण चढ़ाएँ, १,००,००० रुपया लगा। मक्सीजी के मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। उदयपुर में २ मंदिर, दादा साहब की छतरी बनवाई और धर्मशाला बनवाई। कोटा में २ मंदिर, दादा साहब की छतरी और धर्मशाला बनवाई। जैसलमेर अमरसागर में मंदिर बनवाया। लौद्रवाजी में धर्मशाला बनवाई। बीकानेर में दादा साहबजी की छतरी बनवाई। इस प्रशस्ति की रचना मुनि केसरीचन्द्र ने की। लेखाङ्क १९७६ - सम्वत् १८९७ जैसलमेर के महारावल गजसिंहजी और महारानी राणावतजी के विजयराज्य में जैसलमेर निवासी बाफणा गोत्रीय संघपति गुमानमलजी के पुत्रों, पौत्रों श्री बहादरमल्लजी आदि ने अमरसागर में आदिनाथ भगवान् का मंदिर बनवाकर जिनमहेन्द्रसूरि से प्रतिष्ठा करवाई। लेखाङ्क २०७१ - सम्वत् १९०२ में नागौर में महाराजा तख्तसिंहजी के विजयराज्य में जिनरत्नसूरि की शाखा में वाचनाचार्य कर्मचन्द्र > अखेचन्द्र > रत्नचन्द्र > चैनसुखजी > मोतीचन्द > हीरानन्द , कुशलचन्द , रूपचन्दजी के उपदेश से कशलचन्दजी के बगीचे में समतिनाथ मंदिर का सभा मण्डप श्रीसंघ ने बनवाया। लेखाङ्क २०७९ - पं० रूपचन्द ने अपने ही बगीचे में उक्त छः गुरुओं की चरण स्थापना की। लेखाङ्क २१५० के अनुसार सम्वत् १९०७ में अपने गुरु कुशलचन्दजी की बगीची में दोनों दादाजी के चरण स्थापित किये थे। (इन्हीं रूपचन्दजी के शिष्य क्रियोद्धारक मोहनलालजी महाराज थे।) लेखाङ्क २०७८ - हठीसिंहजी की वाड़ी मंदिर की प्रतिष्ठा सम्वत् १९०३ में हुई थी। उसकी प्रतिष्ठाप्रशस्ति खरतरगच्छीय क्षेमशाखा के महोपाध्याय हितप्रमोद के शिष्य स्वरूपचन्द्र ने लिखी थी। लेखाङ्क २२१९ - सम्वत् १९१२ में महोपाध्याय शिवचन्द्रगणि के शिष्य रामचन्द्रमुनि ने मक्सी तीर्थ में अभयदेवसूरि आदि पाँच चरणों की प्रतिष्ठा की। इसी प्रकार लेखांक २२२० में धुलेवा नगर में अभयदेवसूरि आदि ४ चरणों की प्रतिष्ठा की। लेखाङ्क २२९१ - सम्वत् १९२० बूंदी नगर में महाराजा रामसिंहजी और राजकुमार भीमसिंह के विजयराज्य में बाफणा बहादरमलजी के पुत्र दानमल्ल, हम्मीरमल्ल, राजमल्ल द्वारा निर्मित आदिनाथ मंदिर की प्रतिष्ठा श्री जिनमहेन्द्रसूरि के पट्टधर श्री जिनमुक्तिसूरि ने करवाई। लेखाङ्क २३३७ - सम्वत् १९२४ उपाश्रय के लेखानुसार कीर्तिरत्नसूरि शाखा में उपाध्याय
पुरोवाक्
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