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में अनशन और स्वर्गवास सम्वत् १५२५ में हुआ । शाह केला के पुत्र मालाशाह आदि ने शत्रुंजय - गिरनार का संघ निकाला था। इन्होंने पादुका सहित स्तूप बनवाया और इन्हीं मालाशाह ने नाकोड़ा में शान्तिनाथ का मंदिर बनवाकर प्रतिष्ठा करवाई थी ।
लेखाङ्क ७२५ - सम्वत् १५२५ में मंत्री विजपाल की वंश-परम्परा में शाह आसा जो कि पहले दिल्ली में और बाद में अहमदाबाद में निवास करता था, क्षत्रपकुल में प्रसिद्ध था । उसने आबृ तीर्थ की यात्रा करते समय विष्णुदेव के मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया ।
लेखाङ्क ७६० सम्वत् १५२८ में प्रतिष्ठापित कीर्तिरत्नसूरि स्तूप में षोडशदल कमल गर्भित और स्वस्तिकबद्ध चित्र काव्यों में कीर्तिरत्नसूरि की प्रशंसा की गई है।
लेखाङ्क ८८७ सम्वत् १५३६ विंशति विहरमान पट्ट में श्री जिनसमुद्रसूरि, गुणरत्नाचार्य, समयभक्तोपाध्याय, मुनिसोमगणि का उल्लेख किया गया है और जैसलमेर के राउल देवकर्ण का नाम भी प्राप्त होता है ।
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लेखाङ्क ८९२ सम्वत् १५३६ में छाजहड़ गोत्रीय मंत्री फलधर के वंशजों ने भरतचक्रवर्ती की मूर्ति का निर्माण करवाया और बेगड़शाखा के जिनेश्वरसूरि की शाखा में जिनधर्मसूरि के पट्टधर जिनचन्द्रसूरि ने प्रतिष्ठा करवाई ।
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लेखाङ्क ९३२ - सम्वत् १५४३ में महाराणा रायमल्ल के विजयराज्य में पुण्यनंदी के उपदेश से सुकोशल प्रतिमा का निर्माण हुआ।
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लेखाङ्क १०८९ विक्रम सम्वत् १५८३ में जैसलमेर दुर्ग पर राउल श्री चाचिगदेव राउल देवकर्ण > राउल जयतसिंह और कुमार लूणकर्ण के राज्य में शंखवाल गोत्रीय और चौपड़ा गोत्रीय दोनों परिवारों ने मिलकर दो मंजिला अष्टापद मंदिर और शान्तिनाथ मंदिर की प्रतिष्ठा करवाई। शंखवाल गोत्र की वंशावली संघवी कोचर से प्रारम्भ होकर संघवी जेठा के पुत्र आसराज और उसके पुत्र खेता तक है । खेता ने १५११ से १५२४ तक शत्रुंजय तीर्थ की १३वीं बार यात्रा की थी ।
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चौपड़ा गोत्रीय पांचा के ४ पुत्र संघवी शिवराज, संघवी महिराज, संघवी लोला और संघवी लाखण थे। पांचा की पुत्री का नाम गेली था और इसका वैवाहिक सम्बन्ध शंखवाल गोत्रीय आसराज के परिवार के साथ हुआ था, इसलिए शंखवाल और चौपड़ा दोनों परिवारों ने मिलकर जो धार्मिक कृत्य किये उनका विस्तार से वर्णन है और उनकी वंश परम्परा भी विस्तार से दी गई है। इन लोगों ने जिनहंससूरि का पदाभिषेक महोत्सव भी किया था, यात्री संघ भी निकलवाये थे और १५८१ में राउल जयतसिंह के आदेशानुसार पार्श्वनाथ और अष्टापद दोनों मंदिरों के बीच सेरी बनवाई थी जिसके नीचे सड़क / राजमार्ग था । इन लोगों ने गढ़ के निर्माण में भी भाग लिया था । लक्ष्मीनारायण सहित दशावतार की मूर्ति का निर्माण भी करवाया था। यह सारे धार्मिक एवं प्रतिष्ठा कृत्य श्री जिनमाणिक्यसूरि के विजयराज्य में हुए और यह
पुरोवाक्
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