Book Title: Kappasuttam
Author(s): Walther Schubring
Publisher: Jivraj Chellabhai Doshi

View full book text
Previous | Next

Page 28
________________ २२ कप्पसुनं. ४. नत्थि याइं थ केइ सेहतराए अणुवट्ठावियए, तं नो अपणा भुञ्जेज्जा नो अन्नेसिं अणुप्पदेज्जा; एगन्ते बहुफासुए थण्डिले पडिलेहित्ता पमज्जित्ता परिवेयव्वे सिया. जे कडे कप्पट्ठियाणं नो से कप्पइ कप्पट्ठियाणं; जे कडे कप्पट्ठियाणं कप्पर से अकप्पट्ठियाणं. जे कडे अकप्पट्ठियाणं नो से कप्पइ कप्पट्ठियाणं; जे कडे अकप्पट्ठियाणं कप्पर से अकप्पट्ठियाणं. कप्पडिया विकप्पे ठिया कप्पट्ठिया, अकप्पे ठिया अकप्पडिया. १५. भिक्खू य गणायवकम्म इच्छेज्जा अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, नो से कप्पइ अणापुच्छिता आयरियं वा उवज्झायं वा पवत्तिं वा थेरं वा गणि वा गणहरं वा गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; कप्पर से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं उवसंपज्जि - ताणं विहरित. ते य से वियरन्ति, एवं से कप्पर अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; ते य से नो वियरन्ति, एवं से नो कप्पइ अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए. १६. गणावच्छेइए य गणायवकम्म इच्छेज्जा अनं

Loading...

Page Navigation
1 ... 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58