Book Title: Kappasuttam
Author(s): Walther Schubring
Publisher: Jivraj Chellabhai Doshi
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२८
कप्पसुत्तं ४. ज्जा, तं च सरीरगं वेयावबकरा इच्छेज्जा एगन्ते बहुफासुए थण्डिले परिहवेत्तए, अस्थियाइंथ केइ सागारियसन्तिए उवगरणजाए अचित्ते परिहरणारिहे, कप्पइ से सागारकडं गहाय तं सरीरगं एगले बहुकासुए थण्डिले परिद्ववेत्ता तत्थेव उवनिक्खेवियत्वे सिया. २५. भिक्खू य अहिगरगं कहतं अहिगरगं अविओसवेत्ता-नो से कप्पइ गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, नो से कप्पड़ बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्खमित्तए या पविसित्तए वा, नो से कप्पइ गामाणुगामं दूइज्जित्तए. जत्थेव अप्पणो आयरियउवज्झायं पासेज्जा बहुस्सुयं बब्भागम, कप्पइ से तस्सन्तिए आलोएत्तए पडिकमित्तए निन्दित्तए गरहित्तए विउट्टित्तए विसाहित्तए अकरणाए अभुद्वित्तए अहारिहं पायच्छित्तं पडिवज्जितए. से य सुएणं पट्टविए आइयवे सिया, से य सुएणं नो पट्ठविए नो आइयत्वे सिया. से य सुएणं पट्ठविज्जमाणे नो आइयइ, से निज्जूहियवे सिया.
२६. परिहारकप्पट्ठियस्स णं भिक्खुस्स कप्पइ तदिवसं एगगिहंसि पिण्डवायं दवावेत्तए. तेण परं नो से कप्पइ असणं वा ४ दाउं वा अणुप्पदाउं वा. कप्पइ से अन्नयरं वेयावडियं करेत्तए, तंजहा-उट्ठावणं वा अणु, ट्ठावणंवा निसीयवणं वा तुयद्रावगं वा, उच्चारपासवग

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