Book Title: Kalyan 1957 06 Ank 04
Author(s): Somchand D Shah
Publisher: Kalyan Prakashan Mandir

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Page 30
________________ दिगम्बर जैन समाज कलकत्ता की आवश्यक विज्ञप्ति समस्त भारतवर्षीय दिगम्बर जैन समाज करके कर्म निरपेक्ष करते हैं जिससे स्वभाव-वाद. की जानकारी के लिये यह सूचना: निकाली. एकान्तवाद बन जते हैं। जाती है ____३- उपादान की दृष्टि का निमित्त निरपेक्ष सोनगढ के श्री कानजी स्वामी, जो पहले बताते हैं जिससे अहेतुवार बन जाते है । स्थानकवासी साधु थे और अब अपने को ४-निश्चय का कथम करते है और व्यवहार विधिवत् दीक्षित न होते हुये भी दिगम्बर जैन को सर्वथा असत्यार्थ बताकर वेदान्तवाद कहते हैं तथ। उनके व्याख्यानों से प्रभावित हो. (एकान्तवाद) को पुष्ट करते हैं। कर बहुत से स्थानकवासी भाई बहनें भी उनके ५-धर्मानुराग को मोक्ष मार्ग में साधनपने बताये हये सिद्धान्तों के अनुसार अपने का से निषेध करते हैं। जिससे पूजा पाठ, स्वाध्याय दिगम्बर जैन मानने लगे हैं। उनके व्याख्यानों आदि श्रावक के षटकर्म प्रयोजनभूत नहीं के दैनिक प्रकाशन एवं पाक्षिक प्रकाशन बडे ठहरते । बड़े शहरों में आते हैं जिससे कुछ दिगम्बर जैन भाईयों का जुकाव मी उधर हो रहा है । कुछ ६-शरीरादिक की क्रिया को अहेतुक एवं शास्त्रों का प्रकाशन भी सोनगढ से हुआ है एवं निरपेक्ष मानने से कोई भी कार्य हेय उपादेय इधर दो तीन मास से श्री कानजी स्वामी अपने रुप नहीं रहते । सिद्धान्तों का प्रचार करने के लिये भारत का - निमित्त का सहायक नहीं मानने से संघ सहित दौरा कर रहे हैं। पूज्य मुनिराजों प्रत्यक्ष का खंडन होता हैं । त्यागियों एवं समाज के प्रमुख विद्वाना द्वारा ८- प्रवृत्तिरूप चारित्र को निरर्थक बनाने. इनके सिद्धांतों को दिगम्बर जैन आम्नाय के से व्यवहार चारित्र की उपादेयता नहीं ठहरती। प्रतिकल बताने के कारण बम्बई इन्दार फिरो. ९ बहिरंग कारणों का कारण नहीं मानते जाबाद आदि कई स्थानों पर कानजी स्वामी के । साथ शान्त वातावरण में तत्त्वचर्चा करने की जिससे द्रव्यआहंसा एवं भोजन की ठाटता कोशिशे की गई पर सफलीभूत न हुई । अन्त । " आदि का निषेध होने से स्वच्छंद प्रवृत्ति को में तीर्थराज श्री सम्मेदशिखर पर भी पूज्य क्षुल्लक प्रोत्साहन मिलता हैं। श्री १०५ श्री गणेशप्रसादजी वर्णी के सानिध्य १०- वर्तमान मुनिराजों एवं त्यागीयों की में चर्चा की योजना बनाई गई एवं सभी प्रमुख विनय नहीं करते । उनको द्रव्यलिंगी बता कर विद्वान एकत्रित किये गये पर श्री कानजी स्वामी दिगम्बर जैन संस्कृतिका लेप करते हैं। चर्चा करने को तैयार नहीं होने के कारण ११- सोनगढ से नवीन साहित्य एवं शास्त्रों तत्त्वचर्चा की यह महत्त्वपूर्ण योजना असफल की टीका प्रकाशित करते है जिसमें अर्थ-विपरही। उनके सिद्धान्त हमारे दिगम्बर जैन यांस करते हैं एवं आगम सूत्रों में काट छाँट सिद्धान्तों से मुख्यतः निम्न विषयों में विरुद्ध व कर निर्दोष जिनवाणी पर आघात करते हैं। विपरीत पाये जाते हैं १२-निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध को सिद्धांत १ ज्ञापक पक्ष का कथन करते हुये कारक के विरुद्ध प्रतिपादन करते हैं। सापेक्ष नहीं करते बल्कि कारक पक्ष का निषेध । १३- अपने पद के प्रतिकल अपने भक्तों से करते हैं जिससे उनके सिद्धान्त नियतिवाद अपनी आरती उतरवाते हैं, पादप्रक्षालन एकान्तवाद, बन जाते हैं। ... करवाते हैं तथा अपने के। सद्गुरु आत्म-धर्म २-योग्यतावाद का कथन कर्म सापेक्ष नहीं प्रवर्तक श्रुतकेवली आदि कहलवाकर दिगम्बर

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