Book Title: Kalyan 1957 06 Ank 04
Author(s): Somchand D Shah
Publisher: Kalyan Prakashan Mandir

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Page 31
________________ : २५६ : माश्य विज्ञप्ति : जैन परिपाटी का लेप करते हैं। समाज को निवेदन करते हैं कि सभी धर्मबन्धु अपने गलत रास्ता बताकर भविष्यत् काल के लिये अपने ग्रामों एवं शहरों में इस सूचना का गुमराह करते हैं। प्रचार करें एवं उनके साहित्य को मान्यता नहीं ___ इतना सब होते हुये तथा अनेकों वार दे और अपने को इस एकान्त मिथ्यावाद से त्यागीयों एवं विद्वानों के आग्रह करने पर भी बचाते हये. पूर्वाचार्यो की परंपरागत पद्धति में तत्वचर्चा करने को तैयार हो कर अपनी भूल श्रद्धा रख कर अपना हित करें । ता २३-४-१९५६ सुधारना नहीं चाहते हैं। अत एवं इत्यादि बातों को जानकर हम निवेदक गणकलकत्ता दिगम्बर जैन समाज के लोग भगवान नेमीचन्द छाबडा, हरकचन्द सरावगी आदिनाथ से लेकर भगवान महावीर तक एण्ड का, पन्नालाल भागचंद, चांदमल धन्नालाल, चतुर्विशति तीर्थंकरों की तथा श्री कदकदाचार्य भंवरलाल चांदमल, छोगमल रतनलाल, श्री समंतभद्रदेव, श्री अकलंकदेव श्री नेमीचन्द्र जुहारमल जहारमल चंपालाल, लालचंद दीपचंद, सिद्धान्त चक्रवर्ती आदि दिगम्बर जैनाचायों चैनमुख गंभीरमल, प्रकाशचंद टीकमचंद, की वाणी को अक्षण्ण बनाये रखने देत शांतिकुमार कमलकुमार, भंवरलाल कंवरीलाल निश्चित करते एवं घोषित करते हैं कि श्री फूलचंद सुगनचंद आदि ८०० प्रसिद्ध फर्म और कानजी स्वामी की विचारधारा पूर्णत : एकान्त व्यक्त । मिथ्यावाद है एवं उनका समस्त साहित्य नोट:-- स्थान की कमी से सब के नाम एकान्तवाद पर बना हुआ है ।" अत एवं समस्त प्रकाशित नहीं किये जा सके हैं । जिसे देखना भारतवर्षीय दिगम्बर जैन समाज को हम लोग हा असल देख सकता है . इस एकान्तवाद से सावधान करते हैं और यह [अहिंसामाथी] આજના સીનેમાઓથી આપણે કેટલું નુકશાન વેઠી રહ્યા છીએ. આજે ભારતભરમાં ૩૦૦ સીનેમા ઘરો છે. સીનેમા જેવા જતાં ટીકીટ બારી પર લાઈન લગાવવી પડે છે, ટીકીટ લેવામાં ઘેરથી જવા આવવામાં અને સીનેમા જોવામાં બધા મળી સવાચાર કલાક દરેક પ્રેક્ષકને ગુમાવવા પડે છે. બધી સીનેમા બેઠકને હીસાબ કરીએ તે રૂા. ૨૨૭૫૦૦૦ બાવીસ લાખ પતેર હજાર માણસે સીનેમા કાયમ જુએ પછી વર્ષના હિસાબે તેતર કરોડ માણસે સીનેમા જુએ છે. એક એક વ્યક્તિને સવાચાર કલાકના સમયને હીસાબ ગણુએ. તો વીસ હજાર આઠસે ચેવિસ વર્ષ થાય છે અને એક વ્યક્તિ દિઠ માત્ર એક એક રૂપીઓ ખર્ચનો ગણીએ તે દસ વરસે ૭૩ કરોડ રૂપીઆ સનેમાના શેખ પાછળ माय छे. આ બધું ગુમાવીને આપણે શું મેળવીએ છીએ? અનાચાર, વ્યભિચાર ભ્રષ્ટાચાર ચેરી, લુંટ અને ગુન્હાઓ કરવાની પ્રબળ પ્રવૃત્તિ ! [હિન્દુમાંથી ]

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