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कल्प बारसा
॥ ७४॥
उवागच्छिजा, जहा से पाणिंसि दए वा दगरए वा दगफुसिआ वा नो परिआवजइ ॥२९॥ स्थविराव हवासावासं पजोसवियस्स पाणिपडिग्गहियस्स भिक्खुस्स जं किंचि कणगफुसियमित्तंपि निव
|वृष्टौ सपाडति, नो से कप्पइ गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥३०॥ त्रापात्रहै वासावासं पजोसवियस्स पडिग्गहधारिस्स भिक्खुस्स नो कप्पइ वग्घारियवुट्रिकायंसि गाहा-: विधिः है वइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, कप्पइ से अप्पबुट्ठिकायंसि से
संतरुत्तरंसि गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥३१॥ (ग्रं० ११००) वासावासं पजोसविअस्स निग्गंथस्स निग्गंथीए वा गाहावइकुलं पिंडवायपडि-है याए अणुपविट्ठस्स निगिज्झिय २ वुट्ठिकाए निवइजा, कप्पइ से अहे आरामंसि वा अहे उवहै स्सयंसि वा अहे वियडगिहंसि वा अहे रुक्खमूलंसि वा उवागच्छित्तए ॥३२॥तत्थ से पुवाग-है। मणेणं पुवाउत्ते चाउलोदणे पच्छाउत्ते भिलिंगसूवे, कप्पइ से चाउलोदणे पडिगाहित्तए, नो से कप्पइ भिलिंगसूवे पडिगाहित्तए ॥ ३३॥ तत्थ से पुवागमणेणं पुवाउत्ते भिलिंग
ARNARGATUR KURIAIS
॥७४॥
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