Book Title: Kalpasutram Barsasutram Sachitram
Author(s): Bhadrabahuswami, Meghsuriji
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 189
________________ कल्पसू. १४ Jain Education Interna यरं ओरालं कल्लाणं सिवं घण्णं मंगलं सस्सिरीयं महाणुभावं तवोकम्मं उवसंपजित्ता णं विहरित्तए,' तं एवइयं वा एवइखुत्तो वा, ते य से वियरिजा एवं से कप्पइ अण्णयरं ओरालं कल्लाणं सिवं धण्णं मंगलं सस्सिरीयं महाणुभावं तवोकम्मं उवसंपजित्ता णं विहरित्तए, ते य से नो वियरिजा एवं से नो कप्पइ अण्णयरं ओरालं कल्लाणं सिवं धण्णं मंगलं सस्सिरीयं महाणुभावं तवोकम्मं उवसंपजित्ता णं विहरित्तए । से किमाहु भंते ! ?, आय| रिया पच्चवायं जाणंति ॥ ५० ॥ वासावासं पजोसविए भिक्खू इच्छिज्जा अपच्छिममारणंतियसंलेहणाजूसणाजूसिए भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगए कालं अणवकंखमाणे विहरित्तए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारित्तए वा, उच्चारं वा पासवणं वा परिट्ठावित्तए, सज्झायं वा करित्तए, धम्मजागरियं वा जागरित्तए, नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं पवित्तिं गणि गणहरं गणावच्छेययं वा जं वा पुरओ काउं विहरइ, कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा उव For Private & Personal Use Only तपोऽनशनपृच्छे gainelibrary.org

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