Book Title: Kalpasutram Barsasutram Sachitram
Author(s): Bhadrabahuswami, Meghsuriji
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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कल्प बारसा
॥८१॥
| वियाणं निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा कप्पइ अण्णयरिं दिसिं वा अणुदिसिं वा अवगि-1 स्थविराव. झिय भत्तपाणं गवेसित्तए । से किमाहु भंते ! ?, उस्सण्णं समणा भगवंतो वासासु तवसं-18 पउत्ता भवंति, तवस्सी दुब्बले किलंते मुच्छिज्ज वा पवडिज वा, तमेव दिसं वा अणुदिसंह गोचरः
वा समणा भगवंतो पडिजागरंति ॥६१ ॥ वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा|8| ग्लानाय है निग्गंथीण वा गिलाणहेउं जाव चत्तारि पंच जोयणाई गंतुं पडिनियत्तए, अंतराऽवि से कप्पइ विकल्प वत्थए, नो से कप्पइ तं रयणिं तत्थेव उवायणावित्तए ॥६२॥ इच्चेइयं संवच्छरिअं थेरकप्पं ।। अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातचं सम्मं कारण फासित्ता पालित्ता सोभित्ता तीरित्ता । किट्टित्ता आराहित्ता आणाए अणुपालित्ता अत्थेगइआ समणा निग्गंथा तेणेव भवग्गहणेणं । सिझंति बुझंति मुच्चंति परिनिवाइंति सव्वदुक्खाणमंतं करिंति, अत्थेगइया दुच्चेणं ॥८१ ॥
भवग्गहणेणं सिझंति बुझंति मुच्चंति परिनिवाइंति सवदुक्खाणमंतं करिंति, अत्थेगइया । तच्चेणं भवग्गहणेणं सिझंति बुझंति मुच्चंति परिनिवाइंति सवदुक्खाणमंतं करिंति, सत्तट्ठ
WERESAKAL
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