Book Title: Jogsaru Yogsar
Author(s): Yogindudev, 
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 3
________________ जोगसारु (योगसार) विषय-सुख विषय-सुहइ बे दिवहड़ा पुण दुक्खहँ परिवाड़ि। भुतलउ जीव म वाहि तुहुँ अप्पण खंध कुहाड़ि।। अर्थ - हे जीव! ये विषय-सुख मात्र दो दिन के हैं बस! उसके बाद तो अपार दुःखों की परम्परा ही प्राप्त होने वाली है, अतः तू इनमें मत भूल, स्वयं ही अपने कन्धे पर कुल्हाड़ी मत चला। -- मुनिराज योगीन्दु देव परमात्मप्रकाश, दूहा २/१३८ प्रस्तुत संस्करण की कीमत कम करने वाले दातारों की सूची २५१ रुपये देनेवाले - • श्री बाबूलाल तोतारामजी जैन, भुसावल • श्री शान्तिलालजी सोनाज, अकलूज • श्रीमती रश्मिदेवी वीरेशजी कासलीवाल, सूरत • श्रीमती पतासीदेवी ध.प. श्री इन्द्रचंदजी पाटनी, लाँडनू • स्व. ऋषभकुमार जैन सुपुत्र श्री सुरेशकुमारजी जैन, पिड़ावा • श्रीमती किरण जैन राजेशकुमारजी जैन, उज्जैन • श्री नेमीचंदजी अग्रवाल, चित्तौड़गढ़ • श्रीमती भंवरीदेवी कासलीवाल, जयपुर .ब्र. कुसुमताई पाटील, कुंभोज । २०१ रुपये देनेवाले -. श्रीमती श्रीकान्ताबाई ध.प. श्री पूनमचन्दजी छाबड़ा, इन्दौर •स्व. श्रीमती सीमा काला की स्मृति में ध.प. श्री राजेशकुमारजी काला परिवार, इन्दौर • श्री अरविन्दकुमारजी जैन, मऊ • ब्र. हंसाबेन, सोनगढ़ • श्रीमती आशा डूगरिया हस्ते श्री चाँदमलजी व्हौरा, चित्तौड़गढ़ • श्री ताराचन्दजी सेठी, जयपुर श्रीमती ललितादेवी बाकलीवाल, जयपुर • श्री दिनेशजी काला, जयपुर • श्री सरदारमलजी गोधा, जयपुर । २०० रुपये देनेवाले -. श्रीमती प्रतिमा जैन, कलकत्ता • श्री रमेशचन्दजी जैन, छिन्दवाड़ा . श्रीमती निकिता प्रियंक सेठी, कलकत्ता • श्री सोहनलालजी पहाड़िया, कुचामनसिटी। १०१ रुपये देनेवाले - • श्रीमती पानादेवी मोहनलालजी सेठी, गोहाटी। प्रस्तावना प्रस्तुत ग्रन्थ का नाम 'योगसार' (जोगसारु) है। इसके रचयिता मुनिराज योगीन्दु देव हैं । मुनिराज योगीन्दु देव का पूर्ण जीवनवृत्त अद्यावधि अज्ञात है, परन्तु विद्वानों की शोध-खोज से इतना सुस्पष्ट हो गया है कि वे आज से लगभग १३०० वर्ष पूर्व विक्रम की छठी-सातवीं शताब्दी में हुए थे और उन्होंने कम से कम इन २ ग्रन्थों की रचना अवश्य की थी:-१. परमात्मप्रकाश और २. योगसार । यद्यपि इन दो ग्रन्थों के अतिरिक्त 'अमृताशीति' और 'निजात्माष्टक' आदि कतिपय अन्य ग्रन्थ भी उनके द्वारा रचित बताये जाते हैं, पर अभी इस सम्बन्ध में विद्वद्गण पूर्ण प्रामाणिकता के साथ कुछ कहने की स्थिति में नहीं हैं। जो भी हो, ‘परमात्मप्रकाश' और 'योगसार' - ये दो ग्रन्थ ही उनकी अक्षयकीर्ति के पूर्ण अधिकारी हैं। इन ग्रन्थों के अध्ययन से यह भली-भाँति ज्ञात होता है कि इनके रचयिता मुनिराज योगीन्दु देव जैन-सिद्धान्त एवं जैन-अध्यात्म के उद्भट ज्ञाता थे और न केवल ज्ञाता थे अपितु उसे अत्यन्त सरल-सुबोध ढंग से समझाने में भी पारंगत थे। उनका विषयप्रतिपादन इतना स्पष्ट, सन्तुलित एवं सुलझा हुआ है कि एक साधारण व्यक्ति भी सुलभता से तत्त्वज्ञान कर सकता है, उसे कहीं उलझन महसूस नहीं होती । संक्षेप में सार बात कहना कोई मुनिराज योगीन्दु देव से सीखे। मुनिराज योगीन्दु देव की काव्यकला भी अतीव मनोहर थी। सबसे छोटे छन्द 'दहा' में भी उन्होंने इतनी कुशलता एवं सरलता के साथ जिनवाणी के गढ-गम्भीर भावों को प्रस्तुत कर दिया है कि हर कोई पाठक मंत्रमुग्ध-सा हो जाता है। प्रस्तुत 'योगसार' उनका योग विषय का श्रेष्ठ आध्यात्मिक ग्रन्थ है। इसमें उन्होंने 'योग' का इतना सुन्दर वर्णन किया है कि अन्यत्र दुर्लभ है। आजकल 'योग' (YOGA) की बहुत चर्चा चलती है। उन सभी योग-प्रेमियों को एक बार आग्रह-मुक्त होकर इस 'योगसार' का आद्योपान्त गहराई से अध्ययन-चिन्तन अवश्य करना चाहिए। आशा है उन्हें इससे सम्यक् दिशानिर्देश प्राप्त होगा। योगसार की भाषा 'अपभ्रंश' है, जो उस समय की एक प्रतिष्ठित लोकभाषा थी। यह भाषा प्रकृति से यद्यपि संस्कृत-प्राकृत जैसी है, परन्तु हमारी आधुनिक हिन्दी भाषा के अत्यधिक नजदीक है, अतः इसे समझना कठिन नहीं है, बहुत सरल है। कुल राशि ४,७१८.००

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