Book Title: Jogsaru Yogsar
Author(s): Yogindudev, 
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 10
________________ जोगसारु (योगसार) जोगसारु (योगसार) (दूहा-२७) जाम ण भावहि जीव तुहुँ, णिम्मल अप्प-सहाउ। तामण लब्भइ सिव-गमणु, जहिँ भावइ तहिँ जाउ।। (हरिगीत) जबतक न भावे जीव निर्मल आतमा की भावना । तबतक न पावे मुक्ति यह लख करो वह जो भावना ।। हे जीव ! जब तक तू निर्मल आत्मस्वभाव की भावना नहीं करेगा, तब तक मोक्ष को नहीं प्राप्त कर सकता। जहाँ इच्छा हो, वहाँ जा। (दूहा-२८) जो तइलोयहँ झेउ जिणु, सो अप्पा णिरु वुत्तु । णिच्छय-णइँ एमइ भणिउ, एहउ जाणि णिभंतु ।। (हरिगीत ) त्रैलोक्य के जो ध्येय वे जिनदेव ही हैं आतमा। परमार्थ का यह कथन है निर्धान्त यह तुम जान लो।। हे भाई ! निश्चयनय ऐसा कहता है कि जो तीन लोक का ध्येय है, जिन है, वही शुद्ध आत्मा है। तू उसे निःसन्देह जान ! उसमें भ्रान्ति मत कर। (दूहा-२९) वय-तव-संजम-मूलगुण, मूढहँ मोक्ख ण वुत्तु । जाव ण जाणइ इक्क पर, सुद्धउ भाउ पवित्तु ।। (हरिगीत) जबतक न जाने जीव परमपवित्र केवल आतमा । तबतक न व्रत तप शील संयम मुक्ति के कारण कहे।। जब तक यह जीव एक परमशुद्ध पवित्र भाव को नहीं जानता, तब तक मूढ़ है और ऐसे मूढ़ जीव के व्रत, तप, संयम और मूलगुणों को मोक्ष का कारण नहीं कहा गया है। (दूहा-३०) जइ णिम्मल अप्पा मुणइ, वय-संजम-संजुत्तु । तो लहु पावइ सिद्धि-सुह, इउ जिणणाहहँ उत्तु ।। (हरिगीत) जिनदेव का है कथन यह व्रत शील से संयुक्त हो। जो आतमा को जानता वह सिद्धसुख को प्राप्त हो।। जिनेन्द्र देव ने कहा है कि यदि कोई जीव निर्मल आत्मा को पहिचानता है और व्रत-संयम से युक्त होता है तो वह शीघ्र ही सिद्धिसुख को प्राप्त करता है। (दूहा-३१) वउ तउ संजमु सीलु जिय, ए सव्वइँ अकयत्थु । जाव ण जाणइ इक्क परु, सुद्धउ भाउ पवित्तु ।। (हरिगीत) जबतक न जाने जीव परमपवित्र केवल आतमा । तबतक सभी व्रत शील संयम कार्यकारी हों नहीं।। जब तक यह जीव एक परमशुद्ध पवित्र भाव को नहीं जानता, तब तक व्रत, तप, संयम और शील- ये कुछ भी कार्यकारी नहीं होते। (दूहा-३२) पुण्णिं पावइ सग्ग जिउ, पावएँ णरय-णिवासु । बे छंडिवि अप्पा मुणइ, तो लब्भइ सिववासु ।। (हरिगीत ) पुण्य से हो स्वर्ग नर्क निवास होवे पाप से । पर मुक्ति-रमणी प्राप्त होती आत्मा के ध्यान से ।। पुण्य से जीव स्वर्ग पाता है और पाप से नरक; परन्तु जो पाप एवं पुण्य दोनों को छोड़कर आत्मा को जानता है, वह मोक्ष प्राप्त करता है।

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