Book Title: Jogsaru Yogsar
Author(s): Yogindudev, 
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 27
________________ जोगसारु (योगसार) देशविरत. ६. प्रमत्त-संयत,७. अप्रमत्त-संयत, ८. अपूर्वकरण, ९. अनिवृत्तिकरण, १०. सूक्ष्म-साम्पराय, ११. उपशान्तकषाय, १२. क्षीणकषाय, १३. सयोगजिन, १४. अयोग-जिन । (जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, २/२४६ प्रश्न-२७. चौरासी लाख योनियाँ कौन-सी हैं? बताइए। उत्तर - नित्यनिगोद ७ लाख + इतरनिगोद ७ लाख ___ = १४ लाख। पृथ्वीकाय ७ लाख + जलकाय ७ लाख + अग्निकाय ७ लाख + वायुकाय ७ लाख २८ लाख। प्रत्येक वनस्पति =१० लाख। द्वीन्द्रिय२ लाख+त्रीन्द्रिय २ लाख+चतुरिंद्रिय २ लाख = ६ लाख देव ४लाख+नारकी ४ लाख+पंचेन्द्रियतिर्यंच४लाख १२लाख मनुष्य =१४ लाख। कुल ८४ लाख। प्रश्न-२८. जिनेन्द्र देव ने जो ६ द्रव्य, ७ तत्त्व और ९ पदार्थ कहे हैं, वे कौन-कौन हैं? नाम बताइए। उत्तर: (क) ६ द्रव्य-जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल । (ख)७ तत्त्व-जीव,अजीव,आस्रव,बन्ध,संवर, निर्जरा व मोक्ष । (ग) ९ पदार्थ-जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष। (दोहा ३५) प्रश्न-२९. उक्त ६ द्रव्यों में कौन अचेतन व असार हैं और कौन सचेतन व सार हैं? उत्तर - उक्त ६ द्रव्यों में एक जीव ही सचेतन और सार है, शेष सभी अचेतन व असार हैं। (दोहा ३६) प्रश्न-३०. यहाँ अन्य सभी द्रव्यों को असार और एक जीवद्रव्य को ही सार किस अपेक्षा से कहा गया है? उत्तर: एक जीवद्रव्य के आश्रय से ही परमसुख की प्राप्ति होती है, अन्य किसी भी द्रव्य के आश्रय से नहीं - इस अपेक्षा से यहाँ जीव को जोगसारु (योगसार) ही सार और अन्य सभी को असार कहा गया है। (दोहा ३६) प्रश्न-३१. यह जीव कब तक कुतीर्थों में भ्रमण करता है, धूर्तता करता है? उत्तर - यह जीव तभी तक कुतीर्थों में भ्रमण करता है, धूर्तता करता है, जब तक कि गुरु के प्रसाद से देहरूपी देवालय में विराजमान अपने आत्मदेव को नहीं जानता है। (दोहा ४१) प्रश्न-३२. मुनिराज योगीन्दु देव को क्या देखकर हँसी आती है? उत्तर - मुनिराज योगीन्दु देव को यह देखकर हँसी आती है कि देव तो देहरूपी देवालय में रहता है, परन्तु लोग उसे मन्दिरों में खोजते फिरते हैं, सिद्ध होकर भी भिक्षा हेतु भ्रमण करते हैं। (दोहा ४३) प्रश्न-३३. जो धर्म जीव को पंचम गति में ले जाता है, वह क्या पुस्तक पिच्छी रखने से होता है? उत्तर - नहीं। जो धर्म जीव को पंचम गति में ले जाता है वह पुस्तक पिच्छी रखने से भी नहीं होता, मठ में रहने से भी नहीं होता, केशलोंच करने से भी नहीं होता और तीर्थों व मन्दिरों पर जाने में भी नहीं होता। वह तो राग और द्वेष दोनों को छोड़कर आत्मा में वास करने से होता है। (दोहा ४७-४८) प्रश्न-३४. जीव को समझाने के लिए मुनिराज योगीन्दु देव ने कौन-से नौ दृष्टान्त दिये हैं? उनके नाम बताइए। उत्तर - जीव को समझाने के लिए मुनिराज योगीन्दु देव ने जिन नौ दृष्टान्तों को गिनाया है, उनके नाम इसप्रकार हैं - १. रत्न, २. दीपक, ३. दिनकर (सूर्य), ४. दही-दूध-घी (अथवा दही-दूध में घी),५. पाषाण, ६. सोना, ७. चाँदी, ८. स्फटिक मणि और ९. अग्नि। इन दृष्टान्तों का मल दोहा इस प्रकार है"रयण दीउ दिणयर दहिउ दुद्ध घीव पाहाणु । सुण्णउरुउ फलिहउ अगिणि णव दिळंता जाणु ।।" (दोहा ५७) प्रश्न-३५. इन सभी दृष्टान्तों का अभिप्राय स्पष्ट कीजिए? उत्तर - इन सभी दृष्टान्तों का अभिप्राय संक्षेप में इस प्रकार समझना

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