Book Title: Jogsaru Yogsar
Author(s): Yogindudev, 
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 26
________________ जोगसारु (योगसार) प्रश्न-१८. आत्मा कितने प्रकार का है? कौन-कौन? उत्तर - आत्मा तीन प्रकार का है : बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा । (दोहा ६) प्रश्न-१९. बहिरात्मा किसे कहते हैं? उत्तर - जो जीव मिथ्यादर्शन से मोहित है और परमात्मा को (अथवा स्व और पर को) नहीं पहिचानता है वह बहिरात्मा है। अथवा - जो देहादि परपदार्थों को ही आत्मा मानता है, वह बहिरात्मा है। (दोहा ७ व १०) प्रश्न-२०. अन्तरात्मा (पण्डित आत्मा) किसे कहते हैं? उत्तर - जो जीव परमात्मा को (अथवा स्व और पर को) पहिचानता है और सर्व परभावों का त्याग कर देता है, वह अन्तरात्मा (पण्डित आत्मा) है। (दोहा ८) प्रश्न-२१. परमात्मा किसे कहते हैं? उत्तर - जो निर्मल है, निष्कल है, शुद्ध है, जिन है, विष्णु है, बुद्ध है, शिव है और शान्त है, वही परमात्मा है - ऐसा जिनेन्द्र देव ने कहा है। (दोहा ९) प्रश्न-२२. परमात्मा के उक्त सभी नामों का सही अर्थ क्या है? उत्तर - (क) निर्मल = राग-द्वेषादि मल से रहित। (ख) निष्कल = कल अर्थात् शरीर से रहित । (ग) शुद्ध = राग-द्वेषादि अशुद्धता से रहित । (घ) जिन = कर्म-शत्रुओं एवं इन्द्रिय-मन के विजेता। (ङ) विष्णु = ज्ञान की अपेक्षा सर्वव्यापक। (च) बुद्ध = पूर्ण ज्ञान से युक्त अर्थात् सर्वज्ञ । (झ) शिव = मोक्ष-अवस्था को प्राप्त । (ज) शान्त = सर्व आकुलता से रहित । प्रश्न-२३. बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा में से कौन हेय' है और १. त्याग करने योग्य, २. ग्रहण करने योग्य । जोगसारु (योगसार) कौन उपादेय? उत्तर - बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा में से बहिरात्मा सर्वथा हेय है और परमात्मा सर्वथा उपादेय । अन्तरात्मा कथंचित् उपादेय भी है और कथंचित् हेय भी। बहिरात्म-दशा की अपेक्षा उपादेय है और परमात्म-दशा की अपेक्षा हेय । प्रश्न-२४. बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा की चर्चा शास्त्रों में कहाँ कहाँ मिलती है? उत्तर - बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा की चर्चा मुख्यरूप से निम्नलिखित शास्त्रों में मिलती है :(क) आचार्य कुन्दकुन्द कृत नियमसार, गाथा १४९-१५० (ख) आचार्य कुन्दकुन्द कृत मोक्षपाहुड, गाथा ५ (ग) आचार्य कुन्दकुन्द कृत रयणसार, गाथा १४१ (घ) आचार्य पूज्यपाद कृत समाधितंत्र, श्लोक ४,५,६ (ङ) कुमारस्वामी कृत कार्तिकेयानुप्रेक्षा,गाथा १९३-१९४ (च) मुनिराजयोगीन्दुदेव कृत परमात्मप्रकाश,दूहा१/१३-१५ (छ) मुनिराज योगीन्दुदेव कृत योगसार, दूहा ७,८,९ प्रश्न-२५. मार्गणास्थान किसे कहते हैं? वे कितने हैं? कौन-कौन? उत्तर - जिन भावों के द्वारा अथवा जिन पर्यायों में जीव को खोजा जाता है, उन्हें मार्गणास्थान कहते हैं। वे १४ हैं :- १. गति, २. इन्द्रिय, ३.काय, ४. योग, ५.वेद,६.कषाय,७.ज्ञान, ८.संयम,९. दर्शन, १०.लेश्या,११. भव्यत्व,१२.सम्यक्त्व,१३.संज्ञी,१४. आहारक। (जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, ३/२९६) प्रश्न-२६. गुणस्थान किसे कहते हैं? वे कितने हैं? कौन-कौन? उत्तर - मोह और योग (मन-वचन-काय की प्रवृत्ति) के कारण जीव के अन्तरंग परिणामों में प्रतिक्षण होने वाले उतार-चढ़ाव का नाम गुणस्थान है। वे १४ कहे गये हैं :- १. मिथ्यात्व, २. सासादन, ३. मिश्र (सम्यग्मिथ्यात्व),४. अविरत-सम्यक्त्व, ५. संयतासंयत/

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