Book Title: Jogsaru Yogsar
Author(s): Yogindudev, 
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 8
________________ १४ जोगसारु ( योगसार ) ( दूहा - १५ ) अह पुणु अप्पा णवि मुणहि, पुण्णु जि करहि असेस । तो वि ण पावहि सिद्ध-सुहु, पुणु संसारु भमेस ।। (हरिगीत ) निज आतमा जाने नहीं अर पुण्य ही करता रहे। तो सिद्धसुख पावे नहीं संसार में फिरता रहे ।। हे जीव ! यदि तू आत्मा को नहीं जानेगा और केवल पुण्य ही पुण्य करता रहेगा तो भी सिद्धसुख को नहीं पा सकेगा, अपितु पुनः पुनः संसार में ही भ्रमण करेगा। ( दूहा - १६ ) अप्पा - दंसणु एक्कु परु, अण्णु ण किं पि वियाणि । मोक्खहँ कारण जोड़या, णिच्छइँ एहउ जाणि ।। १६ ।। ( हरिगीत ) निज आतमा को जानना ही एक मुक्तिमार्ग है । कोइ अन्य कारण है नहीं हे योगिजन! पहिचान लो ।। हे योगी ! एक आत्मदर्शन ही मोक्ष का कारण है, अन्य कुछ भी नहीं ऐसा तू निश्चित रूप से जान । ( दूहा - १७ ) मग्गण-गुणठाणइ कहिय, विवहारेण वि दिट्ठि । णिच्छय-इँ अप्पा मुणहि, जिम पावहु परमेट्ठि ।। ( हरिगीत ) मार्गणा गुणथान का सब कथन है व्यवहार से । यदि चाहते परमेष्ठिपद तो आतमा को जान लो ।। हे जीव ! मार्गणास्थान और गुणस्थान का कथन तो व्यवहारदृष्टि से किया गया है, अतः तू निश्चयनय से कथित आत्मा को पहिचान, जिससे परमेष्ठी पद प्राप्त हो । 8 जोगसारु ( योगसार ) ( दूहा - १८ ) गिहि-वावार - परिट्ठिया, हेयाहेउ मुणंति । अणुदिणु झायहिं देउ जिणु, लहु णिव्वाणु लर्हति ।। ( हरिगीत ) १५ घर में रहें जो किन्तु हेयाहेय को पहिचानते । वे शीघ्र पावें मुक्तिपद, जिनदेव को जो ध्यावते ।। जो जीव गृह-व्यापार में स्थित होते हुए भी हेयाहेय (हेय-उपादेय / हेय - ज्ञेय - उपादेय) को पहिचानते हैं और प्रतिदिन जिनदेव का ध्यान करते हैं, वे शीघ्र ही मोक्ष को प्राप्त करते हैं। ( दूहा - १९ ) जिणु सुमिरहु जिणु चिंतवहु, जिणु झायहु सुमणेण । सो झायंतहँ परम-पउ, लब्भइ एक्क-खणेण ।। ( हरिगीत ) तुम करो चिन्तन स्मरण अर ध्यान आतमदेव का । बस एक क्षण में परमपद की प्राप्ति हो इस कार्य से ।। हे भाई ! शुद्ध मन से जिनदेव का स्मरण करो, जिनदेव का ही चिन्तन करो और जिनदेव का ही ध्यान करो, ताकि एक क्षण में परमपद की प्राप्ति हो । ( दूहा - २० ) सुद्धप्पा अरु जिणवरहँ, भेउ म किं पि वियाणि । मोक्खहँ कारण जोइया, णिच्छइँ एउ वियाणि ।। ( हरिगीत ) मोक्षमग में योगिजन यह बात निश्चय जानिये । जिनदेव अर शुद्धातमा में भेद कुछ भी है नहीं ।। हे योगी ! शुद्धात्मा और जिनवर में कुछ भी अन्तर मत समझो और ये ही मोक्ष के कारण हैं - ऐसा निश्चित रूप से समझो।

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