Book Title: Jogsaru Yogsar
Author(s): Yogindudev, 
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 5
________________ मुनिराज योगीन्दु द्वारा रचित जोगसारु ( योगसार) हमारे यहाँ प्राप्त महत्त्वपूर्ण प्रकाशन मोक्षशास्त्र/चौबीस तीर्थकर महापुराण | सुखी होने का उपाय भाग १ से ८ तक बृहद् जिनवाणी संग्रह जैनतत्त्व परिचय/करणानुयोग परिचय रत्नकरण्डश्रावकाचार/समयसार आ. कुन्दकुन्द और उनके टीकाकार मोक्षमार्ग प्रवचन भाग-१,२,३,४ कालजयी बनारसीदास प्रवचनसार/क्षत्रचूडामणि बालबोध भाग १,२,३ समयसार नाटक/मोक्षमार्ग प्रकाशक तत्त्वज्ञान पाठमाला भाग १,२ सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाग २ (पूर्वार्द्ध + उत्तरार्द्ध) एवं भाग ३ छहढाला (सचित्र)/भ. ऋषभदेव/शीलवान सुदर्शन बृहद् द्रव्यसंग्रह/जिनेन्द्र अर्चना प्रशिक्षण निर्देशिका/जैन विधि-विधान दिव्यध्वनिसार प्रवचन/नियमसार क्रमबद्धपर्याय/दृष्टि का विषय योगसार प्रवचन/तीनलोकमंडल विधान बारसाणुवेक्खा/चौबीस तीर्थकर पूजा समयसार कलश/चिन्तन की गहराईयाँ गागर में सागर/आप कुछ भी कहो प्रवचनरत्नाकर भाग १से ११ तक पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव नयप्रज्ञापन/समाधितंत्र प्रवचन जैनधर्म की कहानियाँ भाग १ से १५ तक पं. टोडरमल व्यक्तित्व और कर्तृत्व अहिंसा के पथ पर/जिनवरस्य नयचक्रम् समयसार अनुशीलन सम्पूर्ण भाग १,२,३,४,५ णमोकार महामंत्र/वीतराग-विज्ञान प्रवचन भाग-५ आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व और कर्तृत्व चौसठ ऋद्धि विधान/कारणशुद्धपर्याय पंचास्तिकाय संग्रह/सिद्धचक्र विधान दशलक्षण विधान/आचार्य कुन्दकुन्ददेव ज्ञानस्वभाव ज्ञेयस्वभाव पंचपरमेष्ठी विधान/विचार के पत्र विकार के नाम भावदीपिका/कार्तिकेयानुप्रेक्षा आचार्य कुन्दकुन्द और उनके पंच परमागम परमभावप्रकाशक नयचक्र परीक्षामुख/मुक्ति का मार्ग पुरुषार्थसिक्युपाय/ज्ञानगोष्ठी युगपुरुष कानजीस्वामी/सामान्य श्रावकाचार सूक्तिसुधा/आत्मा ही है शरण/आत्मानुशासन अलिंगग्रहण प्रवचन/जिनधर्म प्रवेशिका संस्कार/इन भावों का फल क्या होगा मैं कौन हूँ/सत्तास्वरूप/वीर हिमाचल निकसी इन्द्रध्वज विधान/धवलासार रामकहानी/गुणस्थान विवेचन समयसार : मनीषियों की दृष्टि में व्रती श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएँ/पदार्थ-विज्ञान सुखी जीवन/विचित्र महोत्सव सत्य की खोज/बिखरे मोती मैं ज्ञानानन्दस्वभावी हूँ/महावीर वंदना (कैलेण्डर) निर्विकल्प आत्मानुभूति के पूर्व वस्तुस्वातंत्र्य/भरत-बाहुबली नाटक तीर्थंकर भगवान महावीर और उनका सर्वोदय तीर्थ शास्त्रों के अर्थ समझने की पद्धति श्रावकधर्मप्रकाश/कल्पद्रुम विधान सुख कहाँ है/सिद्धस्वभावी ध्रुव की ऊर्ध्वता वी.वि. पाठमाला भाग १,२,३ मैं स्वयं भगवान हैं णमोकार एक अनुशीलन वी.वि. प्रवचन भाग १से ६ तक रीति-नीति/गोली का जवाब गाली से भी नहीं तत्त्वज्ञान तरंगणी/रत्नत्रय विधान समयसार कलश पद्यानुवाद/अष्टपाहुड़ भक्तामर प्रवचन/बारह भावना : एक अनुशीलन योगसार पद्यानुवाद/कुन्दकुन्दशतक पद्यानुवाद धर्म के दशलक्षण/विदाई की बेला अर्चना/शुद्धात्मशतक पद्यानुवाद नवलब्धि विधान/बीस तीर्थंकर विधान षट्कारक अनुशीलन/अपनत्व का विषय पंचमेरु नंदीश्वर विधान/रत्नत्रय विधान भ. नेमिनाथ/भ. पार्श्वनाथ/भ. शान्तिनाथ (दूहा-१) णिम्मल-झाण-परिट्ठिया, कम्म-कलंक डहेवि । अप्पा लद्धउ जेण परु, ते परमप्प णवेवि ।। (हरिगीत) सब कर्ममल का नाश कर अर प्राप्त कर निज-आतमा। जो लीन निर्मल ध्यान में नम कर निकल परमातमा ।। जिसने निर्मल ध्यान में पूर्णतः स्थित होकर कर्मरूपी कलंक को जला दिया है और अपने आत्मा को उपलब्ध कर लिया है, उस परमात्मा को मैं नमस्कार करता हूँ। (दूहा-२) घाइ-चउक्कहँ किउ विलउ', णंत-चउक्कु पदिछ। तह जिणइंदहँ पय णविवि, अक्खमि कव्वु सु-इठ्ठ।। (हरिगीत) सब नाश कर घनघाति अरि अरिहंत पद को पा लिया। कर नमन उन जिनदेव को यह काव्यपथ अपना लिया।। जिन्होंने चार घातिया कर्मों का नाश करके अनन्त चतुष्टय को प्रकट किया है, उन जिनेन्द्र देव के चरणों को नमस्कार करके मैं यहाँ अत्यन्त इष्ट काव्य को कहता हूँ। १. पाठान्तर : घाइचउक्क हनेवि किउ।

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