Book Title: Jivan Sarvasva Author(s): Ratnasundarsuri Publisher: Ratnasundarsuriji View full book textPage 6
________________ गुरुदेव कहते हैं... अभयदान सभी जीवों को दिया जाता है। अनुकंपादान दुखियों को दिया जाता है। परन्तु, धर्मोपग्रह-धर्मोपकारी दान धर्म को पुष्ट करने वाला दान है, अत: वह निश्चित रूप से धर्मनिष्ठ महात्माओं को ही दिया जाता है। "तुम्हें सम्मेदशिखर नहीं जाना है।" मेरे हाथों में "टूर'" में सम्मेदशिखर यात्रा पर जाने का टिकट था और गुरुदेव, आपने मुझे यह आज्ञा दे दी। मैंने सोचा, "दीक्षा के बाद तो सम्मेदशिखर कैसे जा पाऊँगा? और यहाँ तो गुरुदेव मुमुक्षु अवस्था में भी सम्मेदशिखर जाने के लिए मना कर रहे हैं। चलो, टिकट वापस कर देंगे।" मुश्किल से दो महीने बीते होंगे और गुरुदेव, आपने मुझे बुलाकर कहा, "एक मुमुक्षु के साथ तुम्हें सम्मेदशिखर की यात्रा पर पन्द्रह दिन के बाद जाना है। तैयारी कर लेना। तुम्हारा टिकट आ गया है।" और गुरुदेव, उस दिन शाम को आपने मुझे बुलाकर इतना ही कहा, "देखो, टूर में यात्रा पर जाने से मैंने तुम्हें इसलिए मना किया था कि टूर में बहनें ट्रेन के डिब्बे में ही वस्त्र बदलती हैं। तुम युवा हो। आत्मा पर अनगिनत कुसंस्कार लदे हुए हैं और आत्मा निमित्तवासी है। एकाध गलत दृश्य के दर्शन से चारित्र अपनाने की तुम्हारी भावना खण्डित हो जाए तो होगा क्या ? बस, इस वजह से मैंने तुम्हें यात्रा पर जाने से रोका था। पर इस बार तो तुम दो मुमुक्षुओं को ही साथ जाना है, इसलिए इस भय को कोई स्थान नहीं है। गुरुदेव! आत्मा के भावप्राणों को सुरक्षित कर देने वाली आपकी इस निर्मल प्रज्ञा को झुक-झुककर वंदना करने के अलावा मैं और कुछ भी नहीं कर सकता।Page Navigation
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