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गुरुदेव कहते हैं... कर्म तो "क" के समान हैं। बैंक में"चैक"जमा करने पर आपको रकम तो मिल जाती है पर बाद में वह "क" केन्सल हो जाता है।
शुभ या अशुभकर्म जब उदित होते हैं तब वे आपको सुख-दुःख देते हैं, पर वह देने के बाद वे शुभ या अशुभ कर्म शेष नहीं रहते, समाप्त हो। जाते हैं।
आज सुबह, पन्द्रह किलोमीटर के विहार में भी मैं थक गया था, और शाम को आठ किलोमीटर का विहार फिर हुआ।शरीर इस हद तक श्रमित हो चुका था कि कब प्रतिक्रमण पूरा हो और कब मैं सो जाऊँ?
आखिर प्रतिक्रमण पूरा हुआ। विश्राम के लिए मैं संथारा बिछा रहा था और गुरुदेव, आपने यह देख लिया।आपको ध्यान में आ गया कि मैं सोने की तैयारी में ही हूँ और आपने मुझे आवाज लगाई,
"रत्नसुंदर!"
सच कहूँ ? आपकी यह आवाज सुनकर उस पल तो मन में यह विचार आया कि मैं आपसे कह दूँ-"कल सुबह ही मैं आपसे मिलूँगा।" पर मन की यह बात मन में ही रखकर मैं बेमन से आपके पास पहुँचा ।
"रत्नसुंदर, प्रतिदिन रात को चलने वाला तुम्हारा विशेषावश्यक भाष्य का पाठ काफी समय से मैंने नहीं सुना है। मेरी इच्छा है कि आज तुम्हारा यह पाठ मैं सुनूँ।बोलो, सुनाओगे ना?" और सचमुच गुरुदेव, उस वक्त आपने खुदने मेरा पाठ आधे घण्टे तक सुना।
गुरुदेव! आश्रितों को प्रमादसेवन से दूर रखने के लिए आप विविध प्रकार की जो युक्तियाँ आजमाते थे उनसे ऐसा लगता था कि सचमुच आश्रितों के लिए "भवसागरतरणसेतूबन्धकल्पानाम्" ही थे आप।