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गुरुदेव कहते हैं...
हमारे जीवन में परिस्थिति कैसी भी खराब निर्मित हुई हो, परन्तु उसके बारे में जानने के बाद सामान्यजन कुछ भी अच्छान कर सकें और उल्टा उससे कषायवृद्धि करते हों, हमारी कवायवृद्धिका कारण बनते हों तथा बाहर उसका प्रचार करके अधिक विषम परिस्थिति का सर्जन करते हो तो ऐसी परिस्थितियों के संबंध में उन्हें कुछ बताने से क्या लाभ?
"पिछले कुछ दिनों से गुरुदेव, आपने अपना व्यवहार कुछ बदल लिया है, ऐसा नजर आ रहा है। पहले तो गोचरी ग्रहण करने के बाद तुरन्त ही खड़े होकर आप अपने आसन पर पहुँच जाते थे और सूरिमंत्र के जाप में बैठ जाते थे। लेकिन, अभी आपगोचरी के बाद भीगोचरी मांडली में ही बैठे रहते हैं और वहीं पन्ने मँगवाकर जिनवचनों की अनुप्रेक्षा लिखते रहते हैं। जब तक गोचरी ग्रहण कर सभी साधुखड़े नहीं हो जाते तब तक आपवहीं बैठे रहते हैं। इसका कारण क्या है गुरुदेव?"
संध्या के समय वन्दन करने के बाद मैंने आपसे नम्रभाव से यह पूछा था।आपका जवाब यह था
"रत्नसुंदर! अपनी गोचरी मांडली संयमियों की है, वह पिकनिक रुप तो कभी नहीं बननी चाहिए ना? तुम देख ही रहे हो कि गोचरी मांडली में जब तक मैं उपस्थित रहता हूँ तब तक कितनी शांति रहती है ? अलबत्ता, सभी साधु शालीन हैं, फिर भी मेरी उपस्थिति यदि इतनी प्रभावशाली बनी रहती हो तो यह अच्छा ही है ना! सबकी गोचरी जल्दी हो जाए निरर्थक बातचीतन हो, संयम की मस्ती का अनुभव करने के लिए भी यह जरूरी है।"
गुरुदेव! आपकी हम सभी के हित की कांक्षा को स्मरणांजलि देने के लिए न हमारे पास शब्दों का वैभव है और न ही संवेदनाओं की अभिव्यक्ति! आप हमारे लिए क्या नहीं थे, यह प्रश्न है।