Book Title: Jivan Sarvasva
Author(s): Ratnasundarsuri
Publisher: Ratnasundarsuriji

View full book text
Previous | Next

Page 25
________________ गुरुदेव कहते हैं... वैराग्य का प्रमाण बढ़ाने से संसार के पवार्थ अधिक असार, नि:सत्व और संसार की क्रियाएँ अधिक व्यर्थनिष्फल लगती हैं। वैराग्य का अर्थ ही यही है कि सांसारिक पदार्थ असार और सांसारिक क्रियाएँ व्यर्थ लगें। असार अर्थात् बिल्कुल सत्व रहित और व्यर्थ अर्थात् बिल्कुल निष्फलबेकार-फिजुल । जब वैराग्य का प्रमाण बढ़ाने से सांसारिक पदार्थ अधिक निःसत्व और निष्फल लगने लगे तब पहले इन पदार्थों के मोह के प्रभाव के कारण जो धर्मसाधनाएँ रसहीन होती थीं वे ही धर्मसाधनाएँ मोह का प्रभाव न रहने के कारण भावभरी होने लगती हैं और धर्मसाधनाओं में जोम-जोशउल्लास बढ़ते हैं। उस वर्ष चातुर्मास था लालबाग-मुम्बई में । गुरुदेव, सभी आपके वैराग्यरस से भरपूर प्रवचनों के पीछे पागलथे।आपके प्रवचनों का समय था प्रात: ९:०० से १०:०० का, और आपने मुझे १०:०० से १०:३० बजे तक"भीमसेन चरित्र" पर प्रवचन करने की आज्ञा दी थी। कमाल की बात तो यह थी कि आपने स्वयं ही मेरे अध्ययन का समय निश्चित्कर दियाथा-प्रात:८:३०से ९:१५और १०:३५ से ११:१५ शुरू में इसके पीछे निहित कारण को मैं समझ न सका, पर पर्युषण के बाद रात को आपने पूछा था, "रत्नसुंदर, पढ़ाई अच्छी चल रही है?" "हाँ जी" "उसी समय पर?" "हाँ जी" "आज तुम्हें मैं एक बात कहना चाहता हूँ। तुम्हारे अध्ययन का यही समय निश्चित् करने के पीछे मेरा एक ही उद्देश्य था-तुम गृहस्थों के सम्पर्क में आओ ही नहीं।आखिर तुम्हें संयम को संभालना है ना? इस उम्र में गृहस्थों के सम्पर्क से तुम्हारा संयम कैसे संभलेगा?" गुरुदेव! लोकसंपर्क से दूर करके श्लोकसंपर्क में मुझे ओतप्रोत कर देने की आपकी इस दीर्घदृष्टि का अभिनंदन करने हेतु मेरे पास कोई शब्द नहीं है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50