Book Title: Jivan Sarvasva
Author(s): Ratnasundarsuri
Publisher: Ratnasundarsuriji

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Page 19
________________ गुरुदेव कहते हैं... लघुता व्यक्त करना अलग बात है और प्रशंसा प्राप्त करने के लिए लघुता का दिखावा करना अलग बाता लघुता का दिखावा करने से तो अभिमान पुष्ट होता है, जबकि लघुता व्यक्त करने से अभिमान टूट जाता है। यह याद रखना। मन की मोहनीय के साथ गाढ़ी मित्रता है। इस मित्रता को अखण्डित रखने के लिए मन सभी प्रकार के स्वाग धरने के लिए तैयार रहता है। "गुरुदेव, आपतो वर्धमान तप की ओलियों पर ओलियाँ किये जा रहे हैं, पारने में मिठाई तो लेते ही नहीं। आपको नहीं लगता कि शरीर की शक्ति बनी रहे इसके लिए ही सही, थोड़ी मिठाई तो आपको लेनी ही चाहिए। "रत्नसुंदर, तुम तो मिठाई खाते हो ना?" "हाँ।" "एक घण्टे में कितने किलोमीटर चल सकते हो?" "पाँच अथवा साढे पाँच किलोमीटर।" "और मैं ? मैं आसानी से छ: किलोमीटर चल लेता हूँ।" "यही तो मेरी उलझन है कि हम मिठाई खाने वालों के मुकाबले मिठाई नखाने वाले आपमें इतनी अधिक शक्ति और स्फूर्ति कहाँ से आई ?" "तुम जानते हो, हम जब माँ के गर्भ में थे ना तब हमारी माँ ने भारी (गरिष्ठ) खाद्य खाना बंद कर दिया था? इसका अर्थ ? यही कि हमारे शरीर की संरचना सामान्य पदार्थों से ही हुई है, भारी पदार्थों से नहीं। यदि हम अपने शरीर को स्फूर्तिमान रखना चाहते हैं तो हम उसे जितने हल्के द्रव्य देंगे उतना ही वह अधिक स्फूर्त रहेगा। मेरी स्फूर्ति का रहस्य यही है । बोलो, मिठाई खाते रहना है या फिर छोड़ देना है? गुरुदेव! कदाचित् जीवन पूरा हो जाता तो भी यह वास्तविकता मेरे ध्यान में नहीं आती। मिठाई आत्मा के लिए अयोग्य है यह मैं जानता था, पर शरीर के लिए भी वह अनुकूल नहीं है यह समझ तो आपसे ही प्राप्त कमाल ! कमाल!! GCC

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