Book Title: Jinvijayji ka Sankshipta Jivan Parichay
Author(s): Padmadhar Pathak
Publisher: Sarvoday Sadhnashram Chittorgadh

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Page 5
________________ सं. १९६३ में अहमदनगर जिले के वारी गाँव में चातुर्मास किया । वहाँ से एवला, नासिक आदि स्थानों में घूमे और पुन: सं. १९६४ का चातुर्मास वाघली गाँव में किया। एक बार फिर मालवे की तरफ निकले और बुरहानपुर, असीरगढ़, मऊ होते हुए रतलाम में होने वाले साधु-सम्मेलन में भाग लेने पहुँचे । वहाँ से पैदल भ्रमण करते-करते सं. १९६५ में उज्जैन पहुँचे, चातुर्मास किया। इसी चौमासे में श्रीमुनिजी महाराज ने स्थानकवासी संप्रदाय के भेष को त्याग दिया और विद्याध्ययन की दृष्टि से खाचरोद, रतलाम पालनपुर, अहमदाबाद और पाली मारवाड़ गए । पाली मारवाड़ में जैन श्वेतांबर संप्रदाय के मूत्तिपूजक साधुओं से परिचय हुआ । संयोग से उनमें विद्याव्यसनी एक पंडित भी थे। मूर्तिपूजक संवेगी-संप्रदाय का साधु-वेष अपना लिया। फिर पंजाब जाने का भी कार्यक्रम बना था और ये सोजत आदि मारवाड़ के नगरों का भ्रमण करते हुए, सं. १६६६ का चातुर्मास ब्यावर में रहे । ब्यावर में इस संप्रदाय के बड़े आचार्य का पाना हुआ और उनके अनेक शिष्यों के साथ अध्ययन संबंधी अनेक चर्चाएं होती रहीं। इसके बाद गुजरात की तरफ जाना हुआ। वहाँ राधनपुर निवासी एक धनिक सेठ ने शत्रुजय महातीर्थ की यात्रा के लिए एक संघ निकाला जिसके मुख्य अधिष्ठाता ब्यावर वाले चातुर्मास में मिले जैनाचार्य ही थे। शत्रुजय यात्रा के बाद उन्हीं प्राचार्य महोदय व उनके शिष्य समुदाय के साथ श्री मुनिजी ने भावनगर, खम्भात होते हुए सं. १६६७ का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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