Book Title: Jinvijayji ka Sankshipta Jivan Parichay Author(s): Padmadhar Pathak Publisher: Sarvoday Sadhnashram Chittorgadh View full book textPage 4
________________ छोटे भाई श्री बादलसिंह का रूपाहेली में देहावसान हो गया । वि. सं. १६५८ में अठाना गाँव के निकट मुनिजी का परिचय शैवयोगी महंत खाखी बाबा से हुआ । ये योगी सुखानंद महादेव नामक तीर्थ स्थान में प्राये थे । विद्याध्ययन की जिज्ञासावश मुनिजी महाराज इन खाखी बाबा के शिष्य बन गए । कोई ६-८ महीने के बाद ही मुनिजी ने इनका साथ अनेक कारणों से छोड़ दिया । जीवन में फिर मोड़ आया । सं. १६५६ में कुछ एक यतियों के साथ मुनिजी मेवाड़ और मालवे में भ्रमण हेतु निकल पड़े। धार रियासत के दिगठाड़ गाँव पहुँचे। वहाँ स्थानकवासी जैन संप्रदाय के एक तपस्वी साधु से परिचय हुआ और उसी वर्ष उस संप्रदाय में दीक्षित हुए । दूसरा वर्ष आया । सं. १९६० में धार में चातुर्मास किया और राजा भोज के सरस्वती मंदिर का दर्शन किया और वहाँ के शिलालेखों का अवलोकन करना प्रारम्भ किया । प्रसिद्ध विद्वान प्रो० श्रीधर भंडारकर से परिचय हुआ । सं. १६६१ में उज्जैन गए और वहाँ चातुर्मास किया । इस प्रसंग में प्रसिद्ध महाकालेश्वर और चौंसठ योगिनी ग्रादि स्थानों को देखने का सुअवसर मिला । देवास, इन्दौर आदि स्थानों में भ्रमण किया । अगला चातुर्मास खानदेश के चालीस गाँव तालुके के वाघली नामक गाँव में हुआ । दक्षिण प्रदेश के औरंगाबाद, दौलताबाद और एलोरा की गुफाओं को भी देखा । Jain Education International २ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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