Book Title: Jinvijayji ka Sankshipta Jivan Parichay
Author(s): Padmadhar Pathak
Publisher: Sarvoday Sadhnashram Chittorgadh

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Page 15
________________ अध्यक्षता श्रीमुनिजी ने की। बम्बई में रहते हुए “सिन्धी जैन ग्रंथमाला'' व "भारतीय विद्या भवन', दोनों का ही कार्य बड़े वेग से चलाते रहे । सरस्वती की कृपा थी। सन् १६४२ में जैसलमेर के प्राचीन ग्रंथ भण्डारों का इन्होंने निरीक्षण किया। अपने साथ वे १०-१५ विद्वान् मित्रों को ले गए थे। ४-५ महीने जम कर वहाँ के प्रति दुर्लभ एवं प्राचीन ग्रंथों की प्रतिलिपियाँ तैयार करवाई। फिर वापस बम्बई आ गए । श्रीबहादुर सिंहजी सिन्धी भी कार्यवश बम्बई आए हुए थे। भारतीय विद्या भवन की विशेष सुव्यवस्था की दृष्टि से और श्रीमुशीजी के आग्रह से श्रीमुनिजी ने भवन के 'ग्रॉनरेरी डायरेक्टर'' का पद स्वीकार किया। श्री सिन्धी जी के परामर्श से “सिन्धी जैन ग्रन्थ माला" का प्रकाशन कार्य भी भवन के अन्तर्गत कर दिया गया। सन् १९४४-४५ में उदयपुर के अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन हुआ। श्रीमुनिजी इसके स्वागताध्यक्ष थे। राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन को परामर्श देकर श्रीमुशी को इसका मुख्याध्यक्ष बनवाया। सन् १९४६-४७ में श्रीमशी की नियुक्ति उदयपुर राज्य के सलाहकार के पद पर हुई । इस प्रसंग से मुनिजी का भी राजकीय वर्ग से परिचय हुया और उन्होंने उदयपुर में , "प्रताप विश्वविद्यालय'' की स्थापना की योजना रखी। इस शुभ कार्य के लिए स्व० महाराणा श्री भूपालसिंहजी ने एक करोड़ रुपये देने की घोषणा की और श्रीमुनिजी को संयोजक के रूप में नियुक्त किया । एक के बाद एक राज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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