Book Title: Jinvijayji ka Sankshipta Jivan Parichay
Author(s): Padmadhar Pathak
Publisher: Sarvoday Sadhnashram Chittorgadh

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Page 3
________________ पुरातत्त्वाचार्य मुनि श्री जिनविजयजी महाराज संक्षिप्त जीवन-परिचय जन्म : माघ शुक्ला चतुर्दशी वि. सं. १६४४ में मेवाड़ के रूपाहेली नामक गाँव में हना था। आपके पिता ठाकुर श्री वृद्धिसिंहजी परमार राजपूत थे । आपकी माता का नाम श्रीमती राजकुमारी था। वि. सं. १९५५ में चार-पाँच महीने की रुग्गाता के बाद आपके पिता का स्वर्गवास हो गया। अपने पिता की रुग्णता के दौरान आपका परिचय यति देवीहंसजी से हुआ । यतिजी के प्रति मुनिजी महाराज के मन में अपार श्रद्धा थी और इन्हीं की देखरेख में आपका प्रारम्भिक शिक्षण कार्य चलता रहा। वि. सं. १६५७ की घटना है-उपाश्रय में पैर फिसल जाने से वयोवृद्ध यतिजी की कूल्हे की हड्डी टूट गई । मुनिजी महाराज के परिवारजनों ने यतिजी की बड़ी सेवा की। इधर एक अन्य यतिवर्य का रूपाहेली आना हुआ जो परिचर्या निमित्त यति देवीहंसजी को चित्तौड़गढ़ के निकट बानेण नामक स्थान ले गए। मुनिजी महाराज भी उनके साथ वहाँ गए । वि. सं. १६५७ भादों मास में यति देवीहंसजी का स्वर्गवास हो गया। दुर्भाग्यवश इसी वर्ष मुनिजी महाराज के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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