________________
साथ हैम्बर्ग यूनिवर्सिटी में लेखन-वाचन का कार्य किया । नवम्बर में बलिन गए । वहाँ बलिन विश्वविद्यालय के सुप्रसिद्ध प्रोफेसर ल्यूडस् के साथ धनिष्ठ सम्बन्ध हुआ । यही नहीं, बलिन में रहने वाले अनेक भारतीयगण, भिन्न-भिन्न राजनीतिक प्रवृत्तियों के संबंध में श्रीमुनिजी के पास आतेजाते रहते थे। यहाँ श्रीमुनिजी ने “हिन्दुस्तान हाउस' की स्थापना की और इस प्रकार भारतीय संस्कृति एवं राजनीतिक प्रवृत्तियों को संगठित करने के प्रयास किए । 'इण्डोजर्मन केन्द्र'' नामक एक संस्था को जन्म दिया। लंदन और बम्बई के बड़े-बड़े समाचार पत्रों में इस 'हाउस' की खबरें छपती रहती थीं।
भारत में राजनीतिक हलचलें ज़ोर पकड़ रही थीं। इसकी प्रतिक्रिया विदेशों में भी होनी स्वाभाविक थी। महात्माजी से इस बारे में विचार-विमर्श के लिए श्रीमुनिजी ने भारत आना आवश्यक समझा । नवम्बर १६.२६ ई. के अंत में वे बलिन के सर्वप्रसिद्ध दैनिक पत्र के विशेष प्रतिनिधि श्री. फॉनमोलो को साथ लेकर भारत रवाना हुए। कोलम्बो, मद्रास, बम्बई होते हुए अहमदाबाद पहुँचे । महात्माजी को जर्मनी की सारी बातों से अवगत कराया। स्व. वल्लभ भाई पटेल को भी वहाँ की गतिविधियों से परिचित कराया। इसके तुरन्त बाद स्व० महादेव भाई देसाई की प्रेरणा से महात्माजी के साथ श्री मुनिजी ने लाहौर के कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया। फरवरी-मार्च में कलकत्ते के स्व. बहादुरसिंहजी सिंघी का आग्रहपूर्ण निमंत्रण मिला । श्रीमुनिजी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org