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वहाँ गए। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की प्रबल इच्छा थी कि उनके विश्वविख्यात शान्तिनिकेतन के विश्व-भारतीकेन्द्र में जैन शिक्षा पीठ की स्थापना की जाय । सिंघीजी ने गुरुदेव से मिलने का प्रबन्ध किया। तदनुसार शान्तिनिकेतन में जैन शिक्षा पीठ की योजना बनी और उसका संचालन करना मुनिजी ने स्वीकार किया।
इधर महात्माजी ने नमक सत्याग्रह आंदोलन का कार्यक्रम तैयार किया और अहमदाबाद के सत्याग्रह आश्रम से डाँडी कूच की यात्रा प्रारम्भ की। महात्माजी की इच्छानुसार श्रीमुनिजी भी मई में ७५ स्वयंसेवकों के साथ इस कूच को चल पड़े। अहमदाबाद से दो तीन स्टेशन आगे निकले ही थे कि इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और सजा सुनाकर बम्बई के वोरली कारावास में भेज दिया गया। वहाँ से कुछ दिन बाद नासिक जेल भेज दिया गया । यहाँ देश के अन्य प्रसिद्ध देश सेवकों से मिलने का सुअवसर मिला। इनमें स्व० जमनालाल बजाज, श्री के० नरीमान, आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। वहीं पर कुछ दिनों बाद स्व० कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी भी आ पहुँचे । जेल-निवास में लिखने-पढ़ने का अच्छा अवसर प्राप्त हुआ । सजा की अवधि पूरी होने पर अक्टूबर में जेल से बाहर आए और श्री मुंशी के साथ सीधे बम्बई पहुँचे । बम्बई पहुँचने पर श्रीमुनिजी व मुंशीजी का भव्य स्वागत हुआ।
जेल में रहते समय श्रीमुंशीजी के साथ भावी साहित्यिक प्रवृत्तियों पर अनेक चर्चाएँ होती रहती थीं। फलस्वरूप अँधेरी
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