Book Title: Jinvijayji ka Sankshipta Jivan Parichay
Author(s): Padmadhar Pathak
Publisher: Sarvoday Sadhnashram Chittorgadh

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Page 6
________________ चातुर्मास बड़ौदा में किया । इधर बड़ौदा के एक धनिक गृहस्थ ने खम्भात की खाड़ी के मुहाने पर प्राचीन जैन तीर्थ स्थान, कावी और गंधार नामक ग्रामों की यात्रा के लिए एक संघ निकाला । श्रीमुनिजी उसमें भी सम्मिलित हुए । इसके बाद भड़ौच आदि होते हुए सूरत प्राए । यहाँ पर इन्होंने वयोवृद्ध जैनमुनि श्री कांतिविजयजी महाराज के दर्शन किए और सं. १९६८ का चातुर्मास उन्हीं के साथ सूरत में किया । सं. १६६६ का चातुर्मास डभूई (गुजरात) में हुआ । अगला चातुर्मास पाटन में हुआ । पाटन के एक धनिक सेठ ने मेवाड़ के ऋषभदेव ( केसरियाजी) की यात्रा के लिए संघ निकाला जिसमें श्रीमुनिजी भी सम्मिलित हुए । केसरियाजी की यात्रा करके वापस गुजरात प्रा गए और सं. १६७१ का चातुर्मास मेहसाना में किया । फिर पालनपुर गए और सं. १६७२ के चातुर्मास हेतु पाटन गए जहाँ इन्होंने पाटन के भंडारों का निरीक्षण प्रारम्भ किया और प्रयाग की सुप्रसिद्ध पत्रिका सरस्वती के लिए लेख तैयार किया जो जनवरी १९१६ के अंक में प्रकाशित हुआ । शाकटायन पर श्रीमुनिजी के जीवन का प्रथम लेख इसी सरस्वती में छपा था । जीवन की पहली पुस्तक थी - गुजराती मूल "जैन तत्त्व सार" का हिंदी अनुवाद | सबसे पहला प्रास्ताविक कथन आपने आगरे वाले लाला कन्नोमल जज की पुस्तिका में लिखा था । लिखने का क्रम बढ़ता गया । पाटन के ग्रंथ-भंडारों से प्राप्त एक अप्रकाशित प्राचीन गुजराती भाषा के ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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