Book Title: Jinvijayji ka Sankshipta Jivan Parichay
Author(s): Padmadhar Pathak
Publisher: Sarvoday Sadhnashram Chittorgadh

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Page 8
________________ अधिवेशन पूना में ही हुआ। इसमें श्रीमुनिजी ने अनेक प्रकार से सक्रिय सहयोग दिया और अधिवेशन में "हरिभद्राचार्य सूरि के समय' पर संस्कृत में एक निबन्ध पढ़ा । इतना ही नहीं स्व० श्री सतीशचन्द्र विद्याभूषण आदि अनेक विद्वानों के साथ प्रकाशनों की योजनाएँ बनाईं। "जैन साहित्य संशोधक समिति'' की स्थापना की और एक प्रैमासिक पत्र तथा ग्रंथमाला के प्रकाशन की योजना बनाई । पूना में रहते हुए लोकमान्य तिलक से संपर्क हुआ और वे स्वयं शास्त्रीय चर्चाओं के उद्देश्य से श्रीमुनिजी के पास कभी-कभी आते रहते थे । पूना विद्वानों का अच्छा खासा केन्द्र बना हुआ था । फरग्यूसन कॉलेज के विद्वानों से भी मुनिजी का परिचय हुआ। प्रो. गुणे, प्रो. रानाडे, प्रो. डी. के. कर्वे आदि प्रसिद्ध विद्वानों से मुनिजी का निकट का संबंध स्थापित हुआ। सं. १९७६ के चातुर्मास के अंत में श्रीमुनिजी को इंफ्लूएंजा ज्वर का तीव्र आक्रमण हुआ। कई महीने तक श्रीमुनिजी निर्जीव से पड़े रहे। इसी वर्ष 'सर्वेण्ट्स ऑफ इण्डिया सोसाइटी' पूना के कार्यालय में उनकी महात्मा गांधी से भेंट हुई और अपने जीवन के बारे में उनसे कुछ विचारविनिमय किया। सन् १९२० में महात्माजी ने असहयोग आंदोलन की घोषणा की। श्रीमुनिजी ने इस राष्ट्रीय आंदोलन में उतरने का संकल्प किया। रेल में बैठकर महात्माजी के पास बम्बई पहुँचे । वहाँ से उन्हीं के साथ अहमदाबाद गए । वहाँ महात्माजी के पास चार-पाँच दिन सत्याग्रह आश्रम में रहे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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