Book Title: Jinvallabhsuri Granthavali
Author(s): Vinaysagar, 
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 344
________________ जिनवल्लभसूरि-ग्रन्थावलि आदि-पद चिंतेयव्वं भवनि० चित्तं सङ्केतिततरविधौ ९८ चित्तबहुलट्ठमीए ३ चित्तसिय पंचमीए चित्तसिय पंचमीए चित्तस्स पुन्निमा चित्तस्स बहुलपंचमि० २ पद्याङ्क पृष्ठाङ्क ५८ १०९ १७६ १७७ चित्तस्स सुद्धएक्कार० चित्ताइचउथि पासे . १८३ १७९ १८० १७८ १९४ १७४ १८८ ८८ २३६ १०५ चिंतासंतानदृष्टं पुर ७२ चिरचियनियक० २ ७३ चिर 'घणकम्म० २ १७१ ३ ४२ चुलसीइजोणिल० : चुलसीइदिणंते १८८ ६ १७६ ६ १८२ चुल्लुक्खाइ ३९ २६ चेतः सन्निहिताऽपि ० ५८ १०२ चोर धाडि संकट ११ २५५ १८४ १८५ १६३ १९४ १८५ २०८ चित्रोत्सर्गापवादे चिन्तातीतिवितीर्ण० १४ चित्तासु चयं अवराइ० १ चित्ते किण्हचउत्थीए २ चुलसीइपुव्वलक्खे चुलसीइवासलक्खे ६ Jain Education International ९ 3 w छउमत्थो वरिसं ५ छउमत्थो सोलस० छचउतिदुगेगमासे २७ छट्टि चुई सेयंसे २० छणं मग्गसिरे छणससिवयणाहिं ४ १४ आदि-पद छत्तीससहस्सजुयं छत्तीसुत्तर पंचसय० छत्रत्रयं यश इव छद्धा संघयणं छन्नउई कडीओ छप्पन्नमंतरोदग० छम्मासवसेसाऊ छव्वीस दिणे आउं छीकइ बइठउ चोर १० छुहवियणावेयावच्च० ९८ जइणो चरण २० जइधम्मासयरूवं ३ पद्याङ्क १० १४ २१ १५ १९ २३ ९ जइ वि अपत्तेयव० ४५ जइवि न आहाकम्मं जइ विदुसमदोसा १६ जइवि हु बहुविहमय० ६ जउछगणाइवि० ४८ जंचेगजिओवि २२ जं जत्थ जया जेसिं ६ जंतू य दुक्खविमुहास ४ जं पढमं जावंतिय ३७ २ पुण पढ सु जंबूद्दीवपमाणा जंभियबहि उजुवा० १२५ ३१ जं लब्भइ इंदत्तं ११ जं लोऍ अपडिकुटुं २२ जं लोए न विरु० ९ ७१ ३२ जं सक्कइ जं कीरइ जं सक्कइ तं हियए For Private & Personal Use Only २७३ पृष्ठाङ्क १५७ १५८ २३० १५५ १५५ १६१ १५४ २५५ ३१ २४ ३५ २२ ५३ ७४ ५८ २६ ६७ ६८ ७५ २६ ३९ ११ १६३ २१३ ६४ ६८ ५५ ४८ www.jainelibrary.org

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