Book Title: Jinshasan Ke Chamakte Hire
Author(s): Varjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
Publisher: Varjivandas Vadilal Shah

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Page 7
________________ निरीक्षण सुश्रावक वरजीवनदासजी को किसी शुभ घड़ी में यह विचार आया कि विश्वमानव के जीवन वृक्ष को अच्छे से अच्छे संस्कारों द्वारा सींचने के लिये लोकभोग्य प्राचीन कथा साहित्य की खूब आवश्यकता है। 'शुभस्य शीघ्रम' कहावत के अनुसार वे तुरंत ही जैन कथा साहित्य की खोज में लग गए। उपदेशप्रासाद, उपदेश-माला तथा अनेक प्राचीन छोटी-मोटी सज्जाओं वगैरह का विस्तृत परिशीलन करके उन्होंने १०८ कथाओं का चयन किया । उन्हीं पूर्वकालीन महापुरुषों के कथा-ग्रन्थों के आधार पर उन्होंने कथाओं का सुन्दर आलेखन करना शुरू किया। उसका परिणाम आज सबके सामने शोभायमान हो रहा है। ___कथाओं के आलेखन मैं भावुक वरजीवनदासजी ने एक बात पर खास ध्यान दिया कि कहीं भी अपनी तरफ से कल्पना करके कुछ जोड़ा नहीं जाय या जिसे पढ़कर कोई दुविधा में पडे या व्यर्थ के संशय खडे न हो जाय। इससे प्राचीन महापुरुषों के अनेक ग्रंथों में से उन्होंने नवनीत की तरह इन कथाओं का संचय-संग्रह करके आलेखन किया है। इस प्रकार एक अच्छे संस्कारी रस-थाल का नजराना भद्रसमाज को भेंट में मिलेगा। वरजीवनदासजी ने अपने इस कथा-संग्रह को अधिक से अधिक प्रामाणिक बनाने के लिये पूज्यपाद गच्छाधिपति आचार्यदेव श्री भुवनभानुसूरीश्वरजी महाराज के चरणों में जांच के लिये निवेदित किया। और पूज्यश्री के अनुसार यह कार्य मेरे भाग आया। अतः जहां कहीं जैन शासन के अनुरूप सुधार करने जैसा लगा उसे लेखक ने सहर्ष स्वीकार किया ग्रह आनंद की बात है। खास यह ध्यान रहे कि बालकों को नज़र समक्ष रखकर इन कथाओं का आलेखन होने से कथाओं में आनेवाली अवांतर घटनाओं का विस्तार यहाँ नहीं किया जा सका है। जो जो मुमुक्षु जीव इन कथाओं का रसपान करके सद्बोध प्राप्त करेंगे - उनके लाभ के साथ-साथ लेखक का परिश्रम भी सार्थक होगा, ऐसी अंतर की मंगल कामना - - जयसुन्दर विजय

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