Book Title: Jinabhashita 2008 12
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 10
________________ अनेकान्त दृष्टि अपनावें . पं० जवाहरलाल मोतीलाल जैन, भिण्डर प्रश्न- वास्तविक सम्यक् अनेकान्तरूप निश्चय- । व्यवहार का तथा दो भिन्न-भिन्न अथवा अन्य-अन्य पदार्थों व्यवहार का और मिथ्या अनेकान्तरूप निश्चय-व्यवहार | में से किसी भी एक पदार्थ का तो निमित्तरूप व्यवहार का प्रतिपादन किया जा सकता है या नहीं? से और दूसरे पदार्थ का नैमित्तिक रूप निश्चय से प्रतिपादन उत्तर- प्रतिपादन तो किया जा सकता है, किया | | किया जाता है। कृपया समाधान करें कि नयचतुष्टय भी जाता है। परन्तु सम्यक् अनेकान्त-रूप निश्चय-व्यवहार के द्वारा प्रतिपादित उपर्युक्त तादात्म्य सम्बन्ध का निरूपण द्वादशांग गर्भित होता है तथा मिथ्या अनेकान्तरूप निश्चय- करनेवाले उपादान-उपादेयभावरूप निश्चय-व्यवहार के व्यवहार द्वादशांग-बाह्य होता है अर्थात् बाह्य अनेकान्त, | | निरूपण और संयोग सम्बन्ध का निरूपण करनेवाले अथवा बाह्य निश्चय व्यवहार नहीं हो सकता। निमित्त-नैमित्तिक भावरूप निश्चय-व्यवहार के निरूपण प्रश्न- भूतार्थ और अभूतार्थ का प्रतिपादन किया | | में से कौन से निश्चय-व्यवहार का निरूपण तो वास्ततिक जा सकता है या नहीं? सम्यग् अनेकान्त स्वरूप निश्चय व्यवहार का निरूपण उत्तर- किया जा सकता है, किया जाना भी चाहिए, | | होने के कारण भूतार्थ का, सत्यार्थ का अथवा परमार्थ क्योंकि अभूतार्थ को जाने बिना भूतार्थ का निर्णय नहीं | का कथन है और कौन से निश्चय-व्यवहार का निरूपण हो सकता। तथैव भूतार्थ को जाने बिना अभूतार्थ का | वास्तविक सम्यक् अनेकान्त स्वरूप निश्चय-व्यवहार का निर्णय नहीं हो सकता। दोनों सापेक्ष शब्द हैं। आगम | निरूपण नहीं होने के कारण अभूतार्थ का, असत्यार्थ में प्राश्निक द्वारा प्रकथित प्रकरण को दृष्टिगत रखते हुए | का, अथवा अपरमार्थ का कथन है? । उत्तर में निवेदन है कि अभूतार्थ भी सर्वथा अभूतार्थ | उत्तर- सर्वप्रथम तो प्राश्निक तत्त्वज्ञ मनीषी को , नहीं होता तथा भूतार्थ भी सर्वथा भूतार्थ नहीं होता। ये | इतना ध्यान रखना चाहिए कि निश्चय व व्यवहार के आपेक्षिक ही हैं। कथन आपेक्षिक होते हैं। जो किसी अपेक्षा से निश्चय प्रश्न- भूतार्थ का प्रतिपादन तो वास्तविक सम्यक् | का विषय होता है, वही विषय भिन्न अपेक्षा से व्यवहारनय अनेकान्तरूप निश्चय-व्यवहार से और अभूतार्थ का | का भी हो जाता है। एवमेव जो विषय व्यवहार का प्रतिपादन मिथ्या अनेकान्तरूप निश्चय-व्यवहार से होना | होता है वही विषय अपेक्षाविशेष से निश्चय का बन मानना सम्यक् है या मिथ्या? जाता है। यथा- दुनिया कहती है कि बालि (वानर) को उत्तर-मिथ्या है। इसका कारण यह है कि जो | राम (अवतार) ने मारा था (यथा-रामेण हतो बालिः), आगम में भूतार्थ कहा है उसका अस्तित्व नियामक अन्यत्रापिअभूतार्थ है, किञ्च, अभूतार्थ भी स्यात् अभूतार्थ है- स्यात् ___ सुन सुग्रीव मैं मारिहों, बालिहिं एकहिं बाण। असत्य-अर्थ ही है। यदि अभूतार्थ सर्वथा (हर प्रकार | ब्रह्म रुद्र शरणागत भयै न उबरहिं प्राण ॥ (रामचरित) से) असत्य-असत् या मिथ्या ही होता तो निश्चय- परन्तु परमार्थ से, अर्थात् वास्तव में, यानि निश्चय व्यवहार-रूप, सद्भूत-असद्भूत व्यवहाररूप भूतार्थाऽभूतार्थ से. अर्थात सत्य तो यह था कि राम ने बालि को नहीं आदि का प्रतिपादक होने से भगवद्-देशना भी कथंचित् | मारा, परन्तु बालि (सुग्रीव का भाई) लक्ष्मण द्वारा मारा सत्य-प्रतिपादक तथा कथंचित् असत्य-प्रतिपादक हो गया था। यथा- आकर्णाकृष्टनिर्मुक्तनिशातसितपत्रिणा। जायेगी। तब आप ही बताइए कि भगवान् थोड़ा-थोड़ा | लक्ष्मणेन शिरोऽग्राहि तालं वा बालिनः फलम्॥ (महातो सत्य (भूतार्थ) तथा थोड़ा-थोड़ा झूठ (अभूतार्थ) बोलते | | पुराण ६८/४६४) थे क्या? अतः अभूतार्थ का प्रतिपादन मिथ्या अनेकान्तरूप उक्त कथन में लौकिक उक्ति का लोप कर सत्य निश्चय-व्यवहार से है, ऐसा मानना उचित नहीं है। का प्ररूपण करने हेतु हम उपचरित असद्भूत व्यवहार प्रश्न- एक ही अभेद पदार्थ के अभेद का प्रतिपादन | (लक्ष्मण से बालि का मारा जाना) को भी 'वास्तविक करनेवाले निश्चय का और उसी अभेद पदार्थ में विशेष | या सत्यार्थ' संज्ञा देते हैं। प्रयोजनवश भेद करके भेद का प्रतिपादन करनेवाले । उपचरित असद्भूत व्यवहार की दृष्टि से एक 8 दिसम्बर 2008 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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