Book Title: Jinabhashita 2008 12
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 15
________________ के बिना मोक्षसुख की प्रार्थना और मोक्ष, ये दोनों भी । तो स्वयं महान् चरित्रवन्त थे। भले ही भोले जन उसे नहीं बनते हैं। इस तरह अनेक दोष निश्चय-व्यतिरिक्त | देख न सकें, पर उन्होंने अपने शास्त्रों में सर्वत्र निश्चय नयों के न मानने से प्रसक्त होंगे, इसीलिए जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश | व व्यवहार नयों का साथ-साथ कथन किया है। जहाँ (भाग २/१२६) में कहा है वे व्यवहार को हेय बताते हैं, वहीं वे उसकी कथंचित् ___ "इनके (कुन्दकुन्द के) आध्यात्मिक ग्रन्थों को | उपादेयता भी बताए बिना नहीं रहते। क्या ही अच्छा पढ़कर भोलेजन उनके अभिप्राय की गहनता को स्पर्श | हो कि अज्ञानी जन उनके शास्त्रों को पढ़कर संकुचित न कर पाने के कारण अपने को एकदम शुद्ध बुद्ध व | एकान्तदृष्टि अपनाने की बजाय व्यापक अनेकान्तदृष्टि जीवन्मुक्त मानकर स्वच्छन्दाचारी बन जाते हैं, परन्तु वे | अपनावें।" वात्सल्यरत्नाकर (द्वितीय खण्ड) से साभार तालडांगरा में प्राचीन जैनमंदिर एवं पार्श्वनाथ की मूर्ति नष्ट हो रही है सिंकलन- सुशील काला, धुलियान (मुर्शीदाबाद)। अनुवादक : ब्र. शान्तिकुमार जैन) विशेष संवाददाता, विष्णुपुर- संस्कार एवं संरक्षण के अभाव में तालडांगराके हाड़मासड़ा गाँव में प्रायः ८०० वर्ष प्राचीन जैनमंदिर और एक पार्श्वनाथ की मूर्ति अनादर के कारण नष्ट हो रही है। स्थानीय ग्रामवासियों के द्वारा की गई शिकायतों और प्रशासन को बारबार बताने पर भी कोई कार्य नहीं हो रहा है। कुछ वर्षों में ही शायद मंदिर और मूर्ति पूर्णतः नष्ट हो जायेंगी। . हाडमासड़ा के इस जैनमंदिर को देखने के लिए आज भी दूर-दूरान्त से पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। स्थानीय गवेषणकारियों के द्वारा बताया जाता है कि अनुमानतः १२वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण हुआ होगा। कहा जाता है कि एक अलौकिक क्षमता से सम्पन्न संन्यासी ने एक रात में ही इस मंदिर का निर्माण किया था। मंदिर का गठन देवरी की आकृति का है। माकड़ा नाम के एक विशेष पत्थर के द्वारा यह निर्मित हुआ है। पूर्वमुखी इस मंदिर की छत कई स्तरों में उपर से नीचे तक बनी __मंदिर के पास जाने से चारों तरफ बड़े-बड़े जंगली पौधों से घिरा हुआ देखा जाता है। मन्दिर की दिवालों पर बड़ी-बड़ी फाड़ें देखी जा रही हैं। सामने का थोड़ा सा भाग बच पाया है। किसी भी समय मंदिर ध्वस्त होकर गिर सकता है। मंदिर से कुछ ही दूरी पर तालाब के किनारे पाँच फुट लम्बी पार्श्वनाथ की एक मूर्ति है। मूर्ति के चारों तरफ घास फूस का जंगल भरा पड़ा है। स्थानीय अधिवासियों से जानकारी मिली है कि उस तालाब से ही यह मूर्ति पाई गई थी। आज भी अनेक पर्यटक आते तो हैं, परन्तु संस्कार एवं संरक्षण के अभाव में सब कुछ विनाश को प्राप्त हो रहा है। विष्णुपुर के प्रवीण टूरिष्ट गाइड अचिन्त्यकुमार वन्दोपाध्याय कहते हैं कि यह मंदिर ८०० वर्षों से भी अधिक प्राचीन है एवं मूर्ति मंदिर के अन्दर ही थी। बर्गी-आक्रमण के समय मूर्ति को किसी कारणवश किसी प्रकार से बाहर लाया गया होगा। सी.पी.एम. परिचालित हाडमासड़ा ग्रामपंचायत के मुखिया शिवानी मुर्मू ने कहा है कि मंदिर के संस्कार के लिए आलोचना की जायेगी। तालडांगरा ग्राम के बी.डी.ओ. रतनकुमार ने कहा है कि मंदिर के संरक्षण और संस्कार के लिए आवश्यक चिन्तन-योजना बनाई जायेगी। शीघ्र हो जाय तो ही अच्छा है। दैनिक पत्रिका 'वर्तमान' (बंगला) कोलकाता ३० जुलाई २००८ पृष्ठ-३ से साभार दिसम्बर 2008 जिनभाषित 13 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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