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से कम कितनी आयु में हो सकती है?
क्योंकि ऐसा मानने पर 'योनि निष्क्रमण रूप जन्म से' समाधान- उपर्युक्त प्रश्न पर सर्वप्रथम तिर्यंचों | यह सूत्र वचन नहीं बन सकता। यदि गर्भ में आने के द्वारा संयमासंयम की प्राप्ति के संबंध में सबसे कम | प्रथम समय से लेकर आठ वर्ष ग्रहण किये जाते हैं, आयु का विचार करते हैं।
तो 'गर्भ पतन रूप जन्म से आठ वर्ष का हुआ' ऐसा ___1. श्री धवला 5/32 में इस संबंध में 2 उपदेश | सूत्रकार कहते हैं, किंतु उन्होंने ऐसा नहीं कहा है। प्राप्त होते हैं
इसलिए 7 मास अधिक 8 वर्ष का होने पर संयम को (अ) दक्षिण प्रतिपत्ति के अनुसार तिर्यंचों में उत्पन्न | प्राप्त करता है, यही अर्थ ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि हुआ जीव 2 मास और मुहूर्त-पृथक्त्व (तीन से नौ के | अन्यथा सूत्र में 'सर्व लघु' पद का निर्देश घटित नहीं बीच) से ऊपर सम्यक्त्व और संयमासंयम को प्राप्त करता | होता।
__प्रश्नकर्ता- राजेन्द्र कुमार जैन, कासगंज। (आ) उत्तर प्रतिपत्ति के अनुसार वह तीन पक्ष | __जिज्ञासा- लोभ कितने प्रकार का होता है? तीन दिवस और अन्तर्मुहूर्त के ऊपर सम्यक्त्व और संयमा समाधान- आचार्यों ने धन आदि की तीव्र आकांक्षा संयम को प्राप्त होता है।
| को लोभ कहा है अथवा बाह्य पदार्थों में जो 'यहा मेरा 2. सर्वार्थसिद्धि पैरा-90 में संयतासंयत का एक | है' इस प्रकार अनुरागरूप बुद्धि होती है, उसे लोभ कहते जीव की अपेक्षा उत्कृष्ट काल कुछ कम एक करोड़ | हैं। यह चार प्रकार का होता है। श्री मूलाचार प्रदीप पूर्व कहा है अर्थात् पूर्वकोटि की आयुवाला जो सम्मूर्छन | में लोभ के चार भेद इसप्रकार कहे हैंतिर्यंच उत्पन्न होने के अन्तर्मुहूर्त के बाद वेदक सम्यक्त्व जीवितारोग्यपंचेन्द्रियोपभोगैश्चतुर्विधः। के साथ संयमासंयम को प्राप्त करता है, उसके संयमा- स्वान्ययोरत्रलोभोदक्षैस्त्याज्यः समुक्तये। 2959 ।। संयम का उत्कृष्ट काल होता है। यह काल अन्तर्मुहूर्त । अर्थ- इस संसार में लोभ चार प्रकार का है। कम एक पूर्व कोटि है।
1. जीवित रहने का लोभ (अधिक समय तक जीवित अब मनुष्यों में संयमासंयम तथा संयम प्राप्ति की | रहने की आकांक्षा करना) 2. आरोग्य रहने का लोभ सबसे कम आयु पर विचार करते हैं।
| (निरन्तर स्वस्थ एवं नीरोग रहने की आकांक्षा करना) श्री धवला पुस्तक-10, पृष्ठ-278 में कहा है- | 3. पंचेन्द्रियों का लोभ (पाँचों इन्द्रियों के विषयों की गर्भ से निकलने के प्रथम समय से लेकर आठ वर्ष | निरन्तर प्राप्ति की आकांक्षा करना) 4. भोगोपभोग की बीत जाने पर संयम ग्रहण के योग्य होता है, इसके | सामग्री का लोभ। चतुर पुरुषों को मोक्ष प्राप्त करने के पहले संयम ग्रहण करने के योग्य नहीं होता, यह इसका | लिये अपने तथा दूसरों के, दोनों के लिए, चारों प्रकार भावार्थ है। गर्भ में आने के प्रथम समय से लेकर आठ | के लोभ का त्याग कर देना चाहिए। वर्षों के बीतने पर संयम ग्रहण के योग्य होता है, ऐसा
1/205, प्रोफेसर्स कॉलोनी, कितने आचार्य कहते हैं, किन्तु वह घटित नहीं होता, |
आगरा (उ.प्र.)
स्वाभिमान के तीरथ बनना, निस्पृहता की मूरत बनना। अपने में आने के पहले, कण-कण में पूजित ही बनना॥ नित्य बनाते रहे मकबरा, केवल बाह्यप्रदर्शन को। तो अपने से दूर हो रहे, खोकर अन्तर्दर्शन को॥
योगेन्द्र दिवाकर, सतना म.प्र. जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय। बारे उजियारो लगै, बढ़े अँधरो होय ।। जो रहीम गति दीप की, सुत सपूत की सोय। बड़ो उजेरो तेहि रहे, गये अँधेरे होय॥ .
-दिसम्बर 2008 जिनभाषित 27
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